[ ७ ] मन्ताउद्दीन बादशाह हुआ। उस समय की बादशाहत नाम मात्र को थी। {"५० ई. में बहलूल तोदी ने पंजाल से आकर तन छीन लिया और अला- उनोन बढाज चला गया। वहलुल के बादशाह होने से पंजाब दिल्ली में मिल गया । जौनपुरवालों से छब्बीस बरस तक लडकर उस ने वह वादशात्त भी दिल्ली में मिलाली । १४८८ में इम के मर पर इस का वेटा सिवांदर बादशाह हुआ। इस ने निन्दुत्रों को अनेक कष्ट दिए । तीर्थ बंद कर दिए । पोर्चुगीज़ लोग पहले पहन इसी के काल में यहां पाए । १५१६ में इस के मरने पर इस का बेटा वैराहीम बादशाह हुा । यह सा नीच और दुष्ट और अभिमानी था कि सब वेदार इस से फिर गए । पंजाव का भूवेदार सिकंदर लोदी जो इस का गोतो था इस से ऐसा दुखी हुआ कि इस ने कावुल के वादशाह बावर जो तैसूर से छठी पुश्त में घा उस को अपनी सहायता को बुन्नाया। वावर ने आतेही पहले सिकन्दर ही का राज नाश किया फिर १५२६ में पानीपत के प्रसिद्ध युद्ध में इबराहीम को जीत कर आप हिन्दुस्ता का बादशाह हुआ । बाबर ने बडी सावधानी से राज्च करना प्रारम्भ किया। दिल्ली के अधि- नस्थ नो सवे फिर गये थे सब जीते । १५२७ में मेवार के राणा संग्राम सिंह ने यहुत से देश जीत लिए थे, इस से काई वेर इंन-से घोर संग्राम हुआ १४२८ में चन्देरी का किन्ना टूटा । सब राजपूत वडी बीरता से वेत रहे । इसी साल राणा संग्रामसिंह ने रंतभंवर का किला ले लिया । १५२९ में वि- हार लाहोर.बंगाल आदि में अफगानों को वावर ने पराजित किया। १५३० सन् में २६ दिसम्बर को बाबर की मृत्यु हुई । कहते है कि हुमायूं बहुत बी- मार हो गया था। बाबर ने इस बात का इतना शोच किया कि आप ही बीमार होकर मर गया । वावर में कई गुण सराइने के योग्य थे । हुमायूं ने राज्य पर बैठ कर अपने तीनों भाई कामरान् हिन्दाल और अस्करी को य- थाक्रम कावुल, सम्भल और मेवात का देश दिया। पहले जौनपुर का विद्रोह निवारण करको फिर वन गुजरात पर चढ़ा और वहां के बादशाह वहादुर शाह को बड़ी बहादुरी से जीत लिया। १५३७ में शेरशाह ने वंगाला जोत लिया और जब इधर हुमायूं शेरशाह से लडने को.आया तो वहादुर शाह फिर खतंत्र हो गया । शेरशाह पहले वावर का एक सैनाध्यक्ष था। हुमायूं ने पहले तो चुनार शेरशाह से जीता किन्तु पीछे शेरशाह ने विश्वासघाततक
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