पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१२५

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फोन को इमने भगा दिया किन्तु तीसरी लडाई में जव हार गई तो श्रा घात कर के मर गई । इस पवित्र स्त्री का चरित्र अब तक बुंदेलखंड में गाय जाता है। अकबर ने वाजवहादुर को अपना निज सुमाहिब बना कर अप पास रक्खा । १५६८ में अकवर ने चित्तौर का किला घेरा। राणा उदयसिं पहाडों में चले गए किन्तु उन के परम प्रसिद्ध वीर जयमल्ल नामक सैनाध्य ने दुर्ग को वडो सावधानी से रक्षा किया। एक रात जयमल किले के बुर्जे की मरम्मत करा रहा था कि अकबर ने दरवोन से देख कर गोली का ऐस निशाना मारा कि जयमल गिर पड़ा। इस सैनाध्यक्ष सरने से क्षत्री तो ऐसे उदास हुए कि सब बाहर निकल आए। स्त्रियां चिता पर जल गई औ पुरुष मात्र लडकर वीर गति को गए। उस युद्ध में जितने क्षत्री मारे गए उन मब का जनेऊ शकचर तोलवाया तो साटे चौहत्तर मन हुआ। इसी से चिट्ठियों पर ७४॥ लिखते है अर्थात् जिस के नाम की चिट्ठी है उस के सिगा और कोई खोले तो चित्तौर तोडने का पाप हो। यद्यपि चित्तौर का किन्ता टूटा किन्तु वह बहुत दिन तक वादशाही अधिकार में नहीं रहा। राणा उदयसिंह के पुत्र राणा प्रतापसिंह मदा सर्वदा लडभिडकर बादशाही सेमा को नाश किया करते थे। जहां वरमात आ और नदी नालों से बाहर से आने का मार्ग बन्द हुआ कि वह क्षत्रियों को ले कर उतरे और वादशाही फेज को काटा । मानसिंह का तिरस्कार करने से अकबर की आज्ञा से १५७६ में जहांगीर और सहावत खां के साथ बडी सैना लेकर मानसिंह ने राणा पर चढाई की। प्रताप सिंह ने हलदीघाटा नामक स्थान पर बड़ा भारी युद्ध किया जिम में हजार राजपूत मारे गए । इम पर भी राणा ने हार नहीं सानो और सदा लडते रहे। अपने बाप के नाम से उदयपुर का नगर भी वसाया और बहुत सा देम भी जीत लिया। १५७३ में गुजरात ७६ में. बंगाला और बिहार ८६ में कश्मीर ८२ में सिंध और ८५ में दक्खिन के सव राज्य अकबर ने जीत लिए । अहमदनगर को युद्ध में [ १६..] चांदसु- ल्ताना नामक वहां के बादशाह को चाची ने बडी शूरता प्रकाश की थी। इमी समय युवराज सलीम वाग़ी हो गया और इलाहाबाद श्रादि अपने अधिकार में कर लिया। किन्तु अकबर जब दखिन से लौटा तो जहांगीर इस के पास हाजिर हुअा। अकबर ने अपराध क्षमा करके बंगाला और बिहार इम को दिया। १५८३ में युसुफ़ज़ाइत्रों की लडा में अकबर के