प्रिय सभामद महाराज बोरवल मारे जा चुके थे और अन्लफ़जल को जहां- गीर के विद्रोह के समय ऊरछा को राजा ने मार डाला था, तथा उस का दूमरा न्नडका सुराद भी अति मद्यपान करके मर चुका था। अब (१६.५) में गवावर को उस के तीसरे लड़के दा नयाल के भी अति मद्यपान से मर नाने का समाचार पहुंचा। इतने प्रियवर्ग के मर जाने से इस का चित्त ऐसा दुखी हुआ कि बीमार हो कर ६३ वर्ष की अवस्था म आगरे में अकवर ने इस असार संसार को त्याग किया । अकबर अति बुद्धिमान और परिणामदर्शी था। आलस्य तो इस को छू नहीं गया था। प्रथमावस्था में तो कुछ भोजन पानादि का व्यमन भी था किन्तु अवस्था बढ़ने पर यह वडा ही सावधान हो गया था । बरस में तीन महीना मांस नहीं वाता था। आदित्यवार को मांस की दुकानें वन्द रहती थी। जिजिया नामक कर और प्रत्यक्ष गोहिंसा उस ने उठा दिया था और सती होना भी वन्द कर दिया था। कर का भी वन्दोवस्त अच्छा किया था। मन्गराज टोडर मल्ल (टन्नन खत्री) अनुन्न फज़न, मानखाना, मानसिंह, तान- सेन गंग, जगन्नाथ पंडितराज और महाराज वीरबल आदि सब प्रकार केचुने हुए मनुष्य इस की सभा में थे। कागज़ हुंडी वही श्रादि का नियम इन्हीं टोड़र मल्ल का वांधा हुआ है। विधवा विवाह के प्रचार में भी इस ने उद्योग किया था और तीर्थों का कर भी छूट गया था। भूमि की उत्पत्ति से टती- यांश लिया जाता था और पन्द्रह सवों में राज बंटा हुआ था। अकवर के मरने पर सलीम नूरुलदीन जहांगीर के नाम से सिंहासन पर बैठा। इस ने बहुत से कर जो अकबर को समय भी बच गए थे बन्द कर दिये । नाक कान काटने की सजा, बादशाही फौज का जमीदार या प्रजा से रसद लेना और अफीम और मद्य का प्रचार इस ने वन्द कर दिया । म- हल में एक सोने को जजीर लटकाई थी कि किसी दीन दुखी की पुकार जो कोई राजपुरुष न सुनै तो वह जंजीर हिला दे । जंजीर की घंटी शब्द पर वह आप बाहर निकल पाता था और न्याव करता था। किन्त १६०६ में ज उस मा लड़का खुसरो पंजाब में बागी हो गया था तव जहांगीर ने उस के सात सौ साथियों को वडो निर्दयता से उस के आंख के सामने मरवा डाला । १८१• से चार वरस तक मलिक अम्बर और अहमद से लडा होती रही। १.१४ में खुर्रम ( शाहजहां ) के साथ एक बड़ी सेना इस ने
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