पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१३

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स्वर में मारा और उसकी सगी रानी को राज्य पर बैठाया। उन लमय श्रीहाण ने कश्मीर की महिमा में एक पुरान का झोक कहा (१त०३२लोक) यही प्रकारण इस बात का प्रमाण है कि कश्मीर का राज्य बहुत दिन से प्रतिष्ठित है । इस रानी के पुत्र का नाम द्वितीय गोलर्द हुआ जो महाभारत को युद्ध में मारा गया । इसी से स्पष्ट है कि पूर्वोक्त तीनों वाजा जवानी ही से सरे क्योंकि एक पांडवों के काल में तीनों का वर्णन आया है। इन लोगों को अनेक काल पीछे अशोकराजा जैनी हुअा। इसो ने श्रीनगर बसाया। इसके पीछे पलीक राजा प्रतापी हुमा जिसने कान्यकुब्जादिदेश जीता। वह शैव था (भारतवर्ष में मूर्तिपूजा और शैव वैष्णवादि मत बहुत ही घोड़े काल ले चले है या कहने वाले महात्मागण इस प्रसंग को पांख खोल कर पढ़े) (१ त० ११३ मो०) फिर हुष्का जुष्क और कनिष्क ये तीन विदेशी (Bactro-Indian-tribe) राजा हुए। इन के समय में शाक्य सिंह को हुए डेढ़ सौ बरस हुए थे। (१ त० १७२ झोक ) एस से स्पष्ट होता है कि राजतरंगिणी के हिसाब से ....mmmmmmmmmmmmmmmnnnnn.mmmmmmmmmmmmment हरिगीती छन्द-तह कासमीरी भूमिपति गोनद धनु टङ्गारि के । भट धर्म वृद्धहि छाय दीनो मारु मार पुकारि के । सुफलका सुवन धनु धरि निज अहि सरिस वान प्रहारिक । सब काटिके दुसमन विसिख महि मध्य दीनो डापित ॥८५ ॥ गोनदं तब बोलत भयौ तू ज्वान प्रगट लहात है । क्यों धर्म वृद्ध कहात है पाचरज यह अधिकात है । पै एक बात विचार करि संदेह मेरो जात है । रन धरम हवन को धरै प्रति सिथिल तेरो गात है ॥८६॥ जदुधीर अब बोलत भयो न्वैप सांच तोहि बातै कहैं । हम धर्म वृद्ध कहात हैं पै करम वृद्ध नहीं हैं । अरु धर्म वृख को नाम है सो वृद्ध बहु दिन को भयो । गोनरद तु रद रहित बूढ़ो पतिहि क्यों चाहै नयो ॥८७ ॥ इमि बचन सुनि मुफलक सुवन के कासमीरी कोपि के । बहु बरखि आयुध वारिधर सम दियो पर रथ लोपि कै । तिमि धर्मावृद्ध बजाय धनु सर त्याग कीने चोपि के । गोन सस्त्र उड़ाय गरज्यो विजय पन वोपि के ६८ ॥