पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१२

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[ ५ ] कर ग्यारह प्राचीन ग्रन्थ इसने इतिहास के देखे थे । केवल इन्हीं ग्रन्थों के सरोगे इसने यह अन्य नहीं बनाया वरंच आजकल के पुरातत्ववेत्ता ( Anti- quarians ) की भांति प्राचीन राजाओं के शासनपत्र दानपत्र तथा शिवालय प्रादि की लिपि भी दूसने देखी थीं। (प्रथम तरंग १५ लोक देखो) यव मन्त्री का पुत्र था इस से सम्भव बै कि इन वस्तुओं को देखने में इसको पूतना परिश्रम न पड़ा होगा जितनायदि कोई साधारन कवि बनाता तो उस को पड़ता। इस ग्रन्थ में पाठ हजार श्लोक हैं। साढ़े छ सौ बरस कलियुग वीत कौरव पांउवों का युध हुमा था यह बात इसी ने प्रचलित की है। जरा- सन्ध को युद्ध में कश्लीर का पहला राजा गोमर्द मारा गया यहां से कथा का भारण्य है। इसी पादि गोनद के पुत्र को श्रीमण ने गान्धार देश के स्त्रय- इम ग्रन्य कर्ता के पिता श्रीयुत वाविवर गिरिधरदाम जी ने अपने जरासन्धवध नामक सणकाग्य में जरासन्ध की सैमा में कश्मीर के मादि गोनर्द के वर्णन में कई एक छन्द लिखा वै वह भी प्रकाश किया जाता है (२ सर्ग ४० छन्द) चलेउ भूप गोनद वर्दवाहन समान बल, शंग लिये बहु मर्द सर्दै लखि होत अपर दल । फेंटा सीम लपटा गल सुकता को साला, सिर केमर को पुंड धरे पचर दुमाला । रय चार जराऊ सोहतो रूप सवन मन मोहतो, कसमीर भूप भरि रिसि लसी मधुरापुरदिसि जाहतो, ॥ (६ सर्ग २५ छन्द) छपाय-मद्रक मुग्भक पनस किंपुरुस द्रुमन्टप कोसल, सोमदत्त बाल्हीक भूरि सह सूरितवा सल । युधामन्यु गोनद अनामय पुनि उतमौजा, चेकितान अरु अङ्ग वान कालिङ्ग महोला । न्टपवृहत छत्र कैसिक मुहित आहूति सहित भुषाल सव। चढ़ि लरे द्वार पश्चिम जवर श्ररि गति पश्चिम देन ढव ॥ (१० सर्ग ११ छन्द) कैसिकन्टपति विक्रमवन्त, अरिमरदन संगभिस्योतुरन्त । धरम वृक्ष गोनर्द महीप, करन लगे रथ जोरि समीप ।