[ ७ ] और आहार बसाया और इमके पीछे वापा ने मन् ७१४ में चितौड का राज्च पाया, दसर ग्रहादित्यक नाम द्वितीय नागादित्य भी लिखा है। बापा तक नाम का क्रम हम पूर्व में लिख आए हैं परन्तु प्राचीन ताम्र- पत्रों से ले कर यदि वंशावलो लिखी जाय तो सेनापति वा भट्टारक तथा धरासेन द्रोण सिंह (प्रथम ) ध्रुवसेन धरापति रहसेन श्रीधरसेन (प्रथम) शीनादित्य ( प्रथम ) चारुग्रह वा वडग्रह (हितीय.) श्रीधरमेन (द्वितीय) (ध्रुवसेन तोय) श्रीधरमेन (रतीय) शोलादित्य (इम के पोछे तीन नाम छुट गए हैं ) शोलादित्य (-टतीय ) और ( चतुर्थ ) शीनादित्य । ___टाड माहव को बंशावलो और वल्लभीपूर को बंशावली में कितना अन्तर है यह ऊपर के नामों से प्रगट होगा। पादरी अण्डरमन माहव ने दो नये तान पत्र पढ़ कर इस वंशावली को शोधा है और वे कहते हैं कि इस में जहां २ श्रीधरमेन लिखा है वह मव नाम धरासेन है और शीनादित्य का नाम मादिता वा विक्रमादिता है और इन्ही को धमादिता भी कहते हैं (१।। पोर वंशावली के प्रथम पुरुष को सेनापति वा भट्टारक वा धमादिता भी लिखा है। दोनों बंशावली में घनमीपुर का अन्तिम राजा शोनादिना है और इन दोनों के संवत भी पाम २ मिलते हैं। पारमो इतिहास वेत्ताओं के मत से इसी गीतादिता का पुत्र ग्रह वा ग्रहादिता जिम ने ग्रहलोत वा म- मोधिया गोत्र चन्नाया नौशेरवां का रचित पुत्र था परन्तु महाराज जैमिंह ने राजा अजयसेन का ही नामान्तर नौशेरवां लिखा है। पारसी इतिहास- वेत्ताओं के मत से नौशेरवां के पुत्र नोशीजाद (हमारे य का नागादितत्र) पौद यज़दिनिद की बेटी माहवान जो इन्ही राजानों में से किसी को व्याही थी इम बंश के मल पुरुष हैं। विनफर्ड माइव के मत से वल्लभीशक के स्थापन वारता अजयसेन वा दूसरी वंशावली के अनुसार धरासेन को ही पुराणों में शूद्रक वा शरक न्ति मना है जिस ने ३२६. वर्ष कनियुग बीते मन १८१ वा २८१ में प्रथम विक्रमादिता के नाम से राज्य किया था (२) मेजर वाटसन के मत से सेनापति भट्टारक मेगाष्ट्र जीतने के दो वर्ष पीछे प्रसिद्ध स्कन्द गुप्त- मरा (३) इस से गुप्त संवत आस ही पास वनभी संवत भी है और इस 1 Bomb. Jour. VI III P. 216, 2 as Ras VLIX pp. 135,230. 3 In Ant VL II1 P.XXX III.
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