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पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१४५

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[ ८] विषय-के उन्हों ने अनेक प्रसाग भी दिए हैं । इस वल्लभी संचत के निर्णय में प्रतिहासवेत्ता विद्वानों के बडे २ झगडे हैं जिस से कदरजन कागज़ के वडे ताव रंग गए है लोग सिद्धान्त करते हैं कि गुप्तवंश जब प्रवल था तब वनभीवंश के लोग उस के बंश के अनुगत थे यहां तक कि भट्टारका सेनापति गुप्त वश विगड़ने के पीछे खाधीन हुआ और अपने दूसरे बेटे द्रोणसिंह को महाराज किया। पांच छ तानपत्र इस वंश के जी मिले हैं उन के परस्पर नामों में बडा फरक है जैसा गुहसेन धरामेन शीलादिता धरासेन शोलादि. ता वा गुहसेन के दो पुत्र शीलादिता और खडग्रह खडग्रह को दो पुत्र धरा- सेन और-ध्र वसेन वा शीलादिता के देसह उन के शीलादिता खडगग्रह और ध्रुवसेन और शीलादिता के बाद फिर शीलादिता । इन नामों के परस्पर प्रतान्त ही विरुद्ध होने से कोई निश्चित बंशावली नहीं बन सकती अतएव इन झगडों को छोड़ कर राना कनकसेन के समय से हमने पूर्व वृत्तान्त प्रारंभ किया। कारण यह कि जव एक-वडा बंश राज्य करता है तो उस को शाखा प्रशाखा पास पास छोटे २ राज्य निर्माण कर के राज करती हैं। इस से क्या आश्चर्य है कि त खपत्रों में ऐसे ही अनेक श्रे- णियों की बंशावली का वर्णन हो जो वास्तव में सब क्लभी वंश से सम्बन्ध रखती हैं। ऐसा ही मान लेने से पूर्वोक्त समय और-वंश-निर्णय की अखस- असता जटिलता घनता असम्बद्धता और विरोधिता दूर होगी। ___ सुमित्र से लेकर शोलादिता तक एक प्रकार का निरणय ऊपर हो चुका और इस से निश्चय हुत्रा कि महाराज सुमित्र कलियुग के अन्त में हुए थे और वल्लभीपुर का नाश भए दो हजार-वर्ष के लगभग हुए। कहा है कि वल्लभीपुर में सूर्यकुण्ड नामक एक तीर्य था । युद्ध के समय शिलादिता के आवाहन करने से इस कुण्ड में मे सूर्य के रथ का-सात सिर का घोडा निक- लता था और इस अख के रथ पर बैठने से फिर शिलादिता को कोई जीत नहीं सकता था। और यह भी कथित है कि सूर्य की दी हुई शिला दता के पास एक ऐसी शिला थी जिस को दिखा देने मे वा स्पर्श करा देने से शत्रुओं का नाश हो जाता था। और इसी वास्ते इन का नास शिलादिता था। इन के किसो शत्रु ने इन्ही के किसी निज भेदिये की सम्मति से उस पवित्न कुण्ड को गोरक्त द्वारा अशुद्ध कर दिया जिस से वल्लभीपुर के नाश के समय राजा के बारम्बार आवाइन करने से भी वह अश्ख नहीं निकला और राजा