[ २० । है कि वल्लभीपुर नाश होने के पीछे वहां के लोग मारवाड़ में पाकर सांदो- रा वान्तो और नांदोर नगर बसा कर रहने लगे और फिर गाजनी नामक एक नगर का और भी उल्लेख है. एक कबि अपने ग्रथ में लिखता है "अस- स्यों ने गाजनी हस्तगत किया. शिलादित्य का घर नन शुन्य हुआ और नो बोर लोग उसकी रक्षा को निकले वे मारे गए" ॥ हिन्दु सूर्य के वंश का यहां चौथा दिवस अवमान हुभा. प्रथम दिवस इक्ष्वाकु से श्रीरामचन्द्र तक अयोध्या में बीता दूसरा दिन लव से सुमित्र तक अन्य राजधानियों में तीसरा सुमित्र से विजय भूप तक अंधेरे मेघों से छिपा हुआ कहां बीता न जान पड़ा और यह चौथा दिन आज वल्लभीपुर में शी- लादित्य के अस्त होने से समाप्त हुभा पांचवें दिन का इतिहास बहुत स्पष्ट है जो गोहा पोर बाप्पा के विचिच चिरित्रों से चिचित हो कर दूसरे अध्याय में वर्णन होगा। पुति उदयपुरोदय प्रथम अध्याय । दूसरा अध्याय । बलभी वंश को रात्रि का अवसान हुमा । उदयपुर के इतिहास को यहां से शृङ्गलाबंधी पूर्व में लिख पाए हैं कि बलभीपुर को यवनों ने घेरा और राजा शीतादित्य ने सकुट म्ब सपरिवार वीरों की गति पाया०. अब और सोसन्तिनी गण राजा की सहगामिनी हुई किन्तु रानी पुष्पबती ( वा कम- सावतो) मात्र जीवित रही। रानी पुष्पवती चन्द्रावती मगर ( सांप्रत घाबनगर ) के राजा की दुहिता थीं। वलभीपुर के प्राक्रमण के पूर्व ही यह रानी गर्भवती होकर अपने पिता के राज में जगदम्बा (प्राविका ) के दर्शन को गई थी और वहां से लौटती समय मार्ग में अपने माणबल्लभ पौर बल्लभीपुर का विनाश सुना और उसी समज अपना प्राण देना चाहा० परन्तु बीरनगर की एक ब्राह्मणो लक्ष्मणावती जो रानी के साथ थी उस के समझाने से प्रसव काल तक पाण धारण का मनोरथ करके मालि या प्रदेश के एक पर्वत की गुहा में काल यापन करना निश्चय किया । इसो गुहा में गुहा का जन्म हुआ और रानीने सद्यो जात सन्तान उस व्राह्मणी को देकर भाप पनि प्रवेश किया० मरती समय रानी ब्राह्मणी को समझा गई थी कि इस पुल को ब्राह्मणोचित शीक्षा देकर क्षत्रिया कन्या से व्याह देना ॥
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