[ २१ ] न गन्य में गमन किया था, और तद्देश अधिकार कर के ग्लेच्छ वंशीया अनेक रसी का पाणिग्रहण किया था। इन सब रमणी के गर्भ से उन की बहुसंख्यक सन्तान ससुत्पन्न हुए थे। सुना जाता है कि एक शतवर्ष की अवस्था में वाप्पा ने शरी त्याग किया। देलवारा प्रदेश के सर्दार के निकट एक ग्रन्थ है उस में लिखा है कि वाप्पा ने इस्यहान, कन्दहार, कश्लोर, पराक, तरान, और काफरिस्तान प्रति देश अधिकार कर के तत् ससुदय देशीया कामिनियों का पाणिपीडन किया था । उन ग्लेच्छ महिला के गर्भ से उन पो १३० पुत्र जन्मे थे। उन लोगों की साधारण उपाधि “ नौशीरा पठान" है उन सब पुत्र में से प्रत्येक ने अपने अपने मात्रिनासानुयायी नाम से एक एक वंश विस्तार किया है। बाप्पा के हिन्दू सन्तान को संख्या भी अल्प नहीं। हिन्दू महिला गण के पर्स में उन्हों ने ८८ पुत्र सन्तान उत्पादन किया था उन लोगों की उपाधि “अग्नि उपासी सूर्यवंशोय" है उक्त अन्य में लिखा है, बाप्पा ने चरम काल में सन्यास आश्रम अवलम्ब कर के सुमेरु शिखर • मूल में अवस्थिति किया था, उन का प्राण त्याग नहीं हुआ है जीवद्दशा में ही इस स्थान में उन की समाधि कया सम्पन्न हुई थी। पन्चान्य प्रबाद में कथित है कि बाप्पा की 'कोई कोई कहते है हिंद ग्रन्यानुसार से पृथ्वी के उत्तर केन्द्र का नाम सुमेरु । किसी किमी ग्रन्थ में सुमेरु तद्प अर्थ में व्यवहृत हुआ है परन्तु पुराण के वर्णन से अनुमान होता है कि किमी विशेष पर्वत का नाम सुमेरु है। जम्व होप के मध्य इलाहत्त वर्ष में "कनकाचल सुमेरु विराजमान है इस के दक्षिण में हिसवान हेमकूट और निषध पर्वत, उत्तर नील और खेत पर्चत।" चन्द्रवंश को आदि पुरुष इला स्त्री रूप में जहां “ पात्ति" हुए थे, उसका नाम इलाकृति वर्ष। “ सुमेरु के दक्षिण में प्रथमत: भारतवर्ष" इस से अनु- मान होता है कि मध्य एशिया का नाम इलावृत वर्ष । अनुसन्धान करने से सुमेरु आविष्क त हो कर पौराणिक भूगोल वृत्तान्त का अधिकांश परिष्क त हो मत्ता है। केवल नाम परिवर्तित हो कर इतना गबड़ा !हुश्रा कोई कोई पाहते हैं कि पेशावर और जलालाबाद के मध्यस्थल में प्रायः चौदह सौ हस्त उच्च मारकोह नाम अति अजवर जो एक पर्बत है वही हिन्दू पुराण क सुमेर है।
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