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पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१५७

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[ २० ] जातरोष मरदार गण ने चितोर राजा के साथ बैरनिर्यातन में कृतमहत्य होकर सब ने एक वाक्य होकर नगर परित्याग कर के अन्यत्र गमन किया। राजा ने उन लोगों के माय सन्धि करने के मानस से वारवार टूत प्रेरणा किया किन्तु किसी प्रकार सरदार गण का कोप शान्त नहीं हुआ। उन लोगों ने कहा, “म लोगों ने राजा का नमक खांया है इस से एक वत्सर कास्त मात्र प्रतीक्षा करेंगे। अनन्तर उन को व्यवहार के विहित प्रतिशोध देने में त्रुटि न करेंगे।" बाप्या के वीरत्व और उदार प्रहति के वशग्वद हो कर सरदार गण ने उन को चितोर का अधिपति करने का अभिप्राय प्रकाश किया। बाप्पा ने सरदार गण के सहायता से चितोर नगर अाजमण कर के अधिकार कर लिया। भट्ट कविगण ने लिखा है “बाप्पा मो राजा के नि- कट से चितोर ले कर खयं उस के “ सौर ” ( अर्थात् सुकुट सुरूप) हुए। चितोर प्राप्ति के पश्चात् सर्व सम्मति से चाप्पा ने 'हिंदूसूर्य' 'राजगुरु' और 'चकवै' यह तीन उपाधि धारण किया था। शेषोता उपाधि का अर्थ साब मोम। बाप्पा के अनेक पुत्र हुए थे। उन में किसी २ ने खीय वंश के प्राचीन स्थान सौराष्ट्र राज्य में गमन किया। आईन प्रकवरी ग्रन्थ में लिखा है कि अकबर सत्राट के समय में इस वंश के पचास सहन पराक्रान्त सरदार सौ. राष्ट्र देश में वास करते थे। वाप्पा के अपर पांच पुत्र ने मारवाड देश में ग- मन किया था। गोहिल-वाल नामक स्थान में गोहिल वंशीय भी बाप्पा की सन्तान हैं। परन्तु वे लोग अपने वंश का सूल विवरगा आप भूल गए हैं। इति पूर्व में उन लोगों ने क्षीर * प्रदेश में था कर वास किया था। और अव पूर्व काल के पूर्व पुरुषगण के नाम वा वंश का अन्य कोई निवरण वह लोग नहीं बतला सकते । घटना क्रम से उन लोगों ने वालभी ग्रास में वास भी किया किन्तु यह नहीं जाना कि यही स्थान उन लोगों की पैत्रिक भूमि है। यह लोग अब अरब गण के सहवास से वाणिज्य कर के जीविका निर्वाह करते हैं। बाप्पा के चरम काल का विवरण सर्वापेक्षा आश्चर्य है। कथित है प- रिणत वयस में उन्हों ने स्वीय राज्य सन्तान गण को परित्याग कर के खुरा-

  • मारवाड़ प्रदेश के दक्षिण पश्चिम प्रान्त में लूणी नदी के निकट क्षीर

भमि है।