[ २७ 1 होप निवासी व्यानमाता नामक एक देवी की उपासना करते थे । बाप्पा ने इस देवी की प्रतिमा और खीय वनिता के सहचितौर में प्रत्या- गमन किया था । गिहलोट वंशीय अद्यावधि व्यानमाना की उपासना करते हैं। बाप्पा ने इस देवी को जिस मन्दिर में प्रतिष्ठित किया था, वह प्राज तक चितौर में विद्यामान है तद्भिन्न तत्रत्य अन्यान्य अनेक अट्टालिका बाप्पा कर्तृक विनिर्मित है यह भी प्रबाद प्रचलित है। यूसुफगुल के कन्या वो गर्भ में बाप्पा को एक पुत्र जन्मा था, उस का नाम अपराजित । हार- का नगरी के निकट बी कालिवायो नगर के प्रमारा वंशीय जनैक राजा झी कन्या से भी बाप्पा ने विवाह किया था। उस रभणी के गर्भ में इस के यहिले बापपा को और एक त्रासित नामक पुत्र जन्मा घा. यदिच आसिल ज्येष्ठ तथापि अपराजित चितौर में जन्मे थे, इस कारण उन्हों ने वहां का राज प्राप्त किया। प्रासिल सौराष्ट्र देश के किसी एक राज्य में राजा हुए थे ए उनकी सन्तान परम्परा से वहां विपुल वंश विस्तार हुअा था । इस वंश की उपाधि पासिला गिहलोट है। ५ आसिता के नामानुसार एक किला का प्रासिला नाम रखा था, यह वंश पत्रिका से ज्ञात होता है। संग्रामदेव मामक जनैक राजा के नि- फट से कुंवायत [ कांबे] नगर अधिकार करने के अभिलाष में पासिल के पत्र विजयपाल समर में निहत हुए थे। विजय की इसी प्राकस्मिक मृत्य घटना के पहिले तद गर्भस्थ पुत्र अकाल में भूमिष्ठ हुमा था, उस पुत्र का नाम सेतु टाड साहब कहते हैं अखाविक मृत्यु प्राप्त व्यक्तिगण भूतयोमि प्राप्त होते हैं। हिंदगण का यह संस्कार है और स्त्री भूत का हिंदुस्थानी नाम चुरत, सेतुकी माता के अस्वाभाविक मृत्यु बशतः सेतु का वंश काचोराइल नाम से प्रसिद्ध हुआ। आसिल से हादशतम अधस्तन पुरुष बीजा गिरनार के राजा शृङ्गार देव के भांजे थे, और सातुल के निकट से इन्हीं ने सालन स्थान प्राप्त किया था। सुराट का राजा जयसिंह देव के साथ समर में बिजा निहत हुए थे। फिरिस्ता ग्रन्थ में जो देबी सालिमा वंश का उल्लेख है, अनुमान होता रहा है देवी और चोरइल, इन दो नाम के समता से तन्नाम को सत्पत्ति हुई है।
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