[ २६ ] परंतु उ का अनुवाद यथोचित मत से निष्यने नहीं हुआ है * अब पहिले वाप्पा के वंशीय राजगण का वृत्तान्त विवरित किया जाता है, पश्चात यथा- योग्य स्थान में मुसलमान गण का 'भारतवर्ष संक्रान्त इतिवृत्त प्रकटित होगा। गिहेलीट वंश की चतशति शाखा । तन्मध्य अनेक शाखा वाप्पा से समुत्पन्न । चितौर अधिकार के पश्चात बाप्पा ने सौराष्ट्र देश में गमन -C के वन्दर हीप के यमुफगुल नाम राजा की कन्चा से विवाह किया। वन्द
- टाड साहव ने फिरिस्ता के अनुवाद में जो सव विषय परित्याग किया
है तन्मध्य में अफगान जाति की उत्पत्ति का विवरण अतीव प्रयोजनीय । मुसलमान गण के साथ हिजरी ६२ अब्द में जिस काल में अफगान जाति का प्रथम आगमन हुपा तव वे लोग मुलेमान पर्वत के निकटस्थ प्रदेश में वाम करते थे। फ़िरिस्ता ने जिस ग्रन्य के ऊपर निर्भर कर के अफगान का विवरणं लिखा है वह यह है “ अफगान लोग कायर जाति के लोग फिर उस उपाधिकारी राजगण के आधीन वास करते थे। उनलोगों में बहुतों ने सूमा को प्रतिष्ठित नतन धर्म व्यवस्था अवलंबन किया था। जिन लोगों ने पूर्व की पौत्तलिकता तयाग नहीं किया वे लोग हिन्दुस्तान से भाग कार कोह-सुलेमान के निकटवत्ती देश में वास करते थे. सिन्धु देश से भागत विनकासिम के माथ उन लोगों का समागम हुअा था। हिजरी १४३ अन्द में उन लोगें ने किरमान और पेशावर पदेश और तन सीमा पर्ती समुदय स्थान अधिकार किया था।" कोहिस्थान का भूगोल हतान्त, रोहिला शब्द की व्युतिपत्ति, और अन्यान्य प्रयोजनीय विषय टाउ साहब ने स्वीय अनु- वाद में परितमाग किया है। कथित है, समुद्र में वन्दर दीप और स्थल में चोयाल नामक स्थान यूसफ़गुल राजा के अधिकार में था, यूमफगुल चौर वंशीय राजपूत, अनल परम का संस्थापन कर्त' रेणु राज अनुमान होता है इसी यूस फगुल का वृत्तान्त कुमार पाल चरित नामक अन्य में लिखा है, रेणुराज के पूर्व पुरु- ष वन्दर होप के अधिपति थे। वन्दर दीप आज कल पोर्तगीस जाति के अधिकार में है। इसका प्रधुनिक नाल रिऔं है। यह नाम पोर्तुगीय जान प्रदता है।