[ २० ] रि हरे ध्व र सन्निधी काटश सुल्क मितचैत्रमासे कृष्णा पो दर्शक र बि वानरे ववकर यो उत्तरायगा संक्रान्ती व्यतीपात निमित्त सूर्य पव्वणि अर्धग्रास ग्रसित समये सर्पयागकरोमि ॥ इसके पीछे ३२००० ब्राह्मण जो वनवाले शान्तलिको गौतम ग्राम और दुसरे गाओं से आए थे जिनमें मुख्य गौतम गोत्री कणशाखीय गोविन्द पट्टव- धन कर्णाट ब्राह्मण का प्रशाखीय वशिष्ठ गोत्री वामनपटवर्धन कर्णाट ब्राह्म- ण कणशाखीय भारद्वाज गोत्री केशव यज्ञ दीक्षित कर्णाटक दाहाण कणशा- रखीय श्रीवत्सगोत्री नारायण दीक्षित कर्णाटक ब्राह्मण थे । उनको गौतम ग्राम के दारही गांव नाद ब िवदवसि चिकहार कतरल गैरे सुरल गोडु ताग रुङ्ग जिंगलूरु वाचेन हच्लित्रं पगोडु और कि रूस म्य गोडु सब सपा अष्ट- भोग समेत पूजन करके दिया। इसके नीचे इन गाओं की सीमा लि रखी है। उसके पीछे 'सनितान् भाविना पार्थिवेन्द्रान् ' यह और 'दानं वा पालनं वापि ' ये दो प्राचीन श्लोक हैं । संगली श्वर का दान पत्र । यह दान पत्र संगलीश्वर का कलादगी जिले में बदामो में हिन्दू मत को बड़ी गुहाओं को पास खुदा है, इस्की लंबाई चौड़ाई २५४ ४३ इञ्च है. यह मंगलीश्वर को र्ति वर्मा का भाई पुग्न कोशी का पुव था. जो शक ४७७ में राज्य करता था. यह दान पत्र श. ५०० (ई. ५७८ ) में लिखा गया है जिस्को १२ वर्ष एब अर्थात् शक .४८८ ( ई. ५६६ ) में यह राज्य पर बैठा था. इस दान पत्र में मंगलीश्वर ने एक विष्णुमन्दिर बनाया और अपने बड़े भाई को स्मरणार्थ जो निपिम्मलिंगेश्वर ग्राम दिया है उसका वर्णन है । स्वस्ति । श्रीस्वामिपादानुध्यातानांमण्डव्यसगोत्राणाम् हारीतिपुत्राणाम् अ- ग्निष्टोमाग्निचयनवाजपेयपौंडरीक बहुसुवर्णाश्वमेधावभृथस्नान पवित्री कृतशिर. साम् चाल्क्यानांवंशसंभूतः शक्तित्रयसंपन्नः चाल्क्यवशाम्बर पूर्णचन्दः अनेकगुण- गणालंकृतशरीरः सर्वशास्त्रार्थतत्वनिविष्टवुद्धिः अतिबलपराक्रमोत्साहसंपन्नः श्रीमं- गालश्वरोरणविक्रान्तः प्रवर्द्धमानराज्णरसंवत्सरे द्वादशेशकनृपतिराज्याभिषेक संव- त्सरे ष्वतिक्रन्तेषु पंचसुशतेषु निजभुजावसम्बितखङ्गधारानमितनृपशिरो मकुटम- णिप्रभारंजिपादयुगलः चतुःसागरपर्य्यन्तावनिविजयः माङ्गलिकागारः परमभागवतो-
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