[ २१ ] लयने मयाविष्णुगृहअतिदैव मानुष्यकाम अत्यद्भुतकर्म विरचितभूमि भागोपभागो परिपर्य्यन्तातिशय दर्शनीय तमकृत्वातस्मिन् महाकातिक्यांपौर्णमास्यांब्राह्मणेभ्यो महाप्रदानत्वाभगवतः प्रलयोदितार्क मण्डलाकारचक्षपितापकारिपक्षरय विष्णोः प्रति- माप्रतिष्ठापना भ्युदये निर्पिमलिङ्गेश्वरम् नामग्रामनारायणावल्युपहारार्थ षोडशमङ्ख्ये- भ्योब्राह्मणेभ्यश्च सत्रनिवन्धं प्रतिदिनअनुविधानं कृत्वाशेषं च परिव्राजकभोज्यंदत्वा सकलजगन्मंडलावनसमर्थारथहस्त्यश्च पदातसकुलानेकयुद्धलब्धजय पताकालम्बित- चतुस्समुद्रोमिनिवारितयशः प्रतापनोपशोभिताय देवद्विजगुरुपूजिताय.ज्येष्ठायस्मद्भा- त्रे कीर्तिवर्मणेपराक्रमेश्वरायतत् पुण्योपचयफलम् आदित्याग्निमहाजन समुक्षमुदक पूर्वविश्राणितमस्मद्भातृशुश्रूषणे यत्फलंतन्मास्यादितिनकैश्चित्परि हापितव्यः । बहुभिर्वसुधादत्ता बहुभिश्वानुपालिता यस्ययस्ययदाभूमिस्तस्यंतस्यतदाफलम् खदत्तां- परदत्तांवायत्नाद्रक्षयुधिष्ठिर । महीमही क्षितांश्रेष्ठदानाच्छ्रेयोनुपालनं । खदतापरक्त्ता- वायोहरेतवंसुधराम् । श्वविष्ठायांकृमिर्भूत्वापितृभिस्सहमज्जात । व्यासगीताःश्लोकाः । मगिक सिका। नहा ! संसार का भी कसा खरूप है और निता याह कुछ से कुछ छुपा जाता है पर लोग इभवो नहीं समझते और इसी में मग्न रहते हैं जल लाखों रुपये के बड़े बड़े और हद मन्दिर बने थे वहां चब साछ भी नहीं है और जो लाखों रपये अपने हाथ से उपार्जन और व्यय करते थे उनके वंश- वाले भीख मांगते फिरते है निता निता नए नए स्त्रान मनले जाते हैं वैसे ही नए नए लोग होते जाते हैं। ___ यह सणिकर्णिका तीर्थ सव स्थानों में प्रसिद्ध है और हिन्दू धर्मावालों को इसका आग्रह सदा से रहा है इसी कारण जो बड़े बड़े राजा हुए उन सबों ने एस स्थान पर कीर्ति कारनी चाहो और एक के नाम को मिटा कर दसरा अपना नाम करता रहा। इस स्थान पर तीर्थ दो हैं एक तो गं- गाजी टूमरा चक्रपुष्करिणी तीर्थ और इन दोनों पर लोगों की सदा दृष्टि रही । घाट के नीचे ब्रह्मनाल और नीलकंठ तक अनेक घाटी के बनने के चिन्ह मिलते हैं। थोड़े दिन हुए कि मणिकर्णिका पर एक पुरामा छत्ता घा जिसको लोग राजा कीचक का छत्ता कहते थे पर न जाने यह कीचक
पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१८८
दिखावट