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पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२०९

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[ ४२ ] गोविंद देव जी के मंदिर को प्रशस्ति । __“ सम्बत ३४ श्री शकवन्ध अकबरशाह राज्ये श्रीकुर्मकुल श्रीपृथीराजाधि । राजवंश महाराजश्रीभगवन्तदास सुत श्रीमहाराजाधिराज श्रीमानसिंहदेव श्रीवृन्दा- वन जोग पीठस्थानकरा श्रीगोविन्ददेव को।" इसकी पारम्भ होने का यह संवत जानना चाहिए । " श्रीवृन्दाबिपिने शिवादिदिविषद्वन्दावलीबन्दिते........श्रीगोविन्द ........ ष्णक्सदाराजते ॥ १ ॥ श्रीमानर्कवरोयदा भुवमयात्सवींतदैवाधुनासर्वः सौख्यम.... गणैः खधर्ममुच्चैर्भजन् । श्रीगोविन्द पदंतदेतदृयिते वासायसद्वैष्णवालगभल....तस्मै सदैवा० पः ॥ २ ॥ तस्मिंस्तस्यसदान्वितक्षितिपतिः श्रीमानसिंहाभिधः पृथ्वीराज विराजः.... धेश्चन्द्रमाः । भूभृदभारहमलजात भगवद्वासात्मजोमन्दिरं कुर्वन्निन्दि- रयाबलादचलया ॥ ३ ॥ .... स्तथाविधमहाराजाधिराजोप्यसौ ये३वारि दिगतेन बिजयीध्वस्त भ्रमः क्रीडति सश्रीमान • सिंह....नवायुद्धेयस्य नियत्यं दिव्य पित- याः कीत्तिधरजत्वंगताः ॥ ४ ॥ यः क० धिपजांतिरेप विजयीश्रीमानसिंहोनृपः.... सदा विजत....दास सुधीः । श्रीगोविन्दपदारविन्द ....स्तनमान्दिरं संमदान् कुर्व- न्नुद्यममत्रतूर्ण....पू.... ॥ ५ ॥ ....श्रीमानसिंहाद्भुतम् ॥ ६ ॥....इन्द्रप्रस्थनिवा- सि....पुगुरुगोविन्ददासाभिधः । ....भवदा वष्य दखिले श्रीवैष्णवानांसुखं श्रीकर्ता हरिणासदानि जदयाया० याविनि.... ॥ ७ ॥ श्रीग्रसेनःकृती, तौटौश्रीयुतभान- सिंहनृपति प्रस्थायितौनन्द ताम् । किम्वाग्नद्ववनीय....प्रतिपदंसौख्यंग्म हद्विन्दतु- ॥ ८ ॥ मुनिवेदतुचन्द्राहू १६४७ सम्व न्मन्दिर सम्भवे.... ॥ ९॥ कलिलुप्ता- तत० तोश्री युतवृन्दावनेशितुःसेवाम् । श्रीमद्र्यसनातननामानौतौभजेतज ॥१०॥" इस पद्यों का अविकान्त न होने से अर्थ लिखना हम उचित नहीं सम- झते । केवल एक दो बात स्मरगा रखने के योग्य है ॥ १॥ म, अकवर का सं- स्कृत नाम " अर्कबर' है प्रायः भापा रसिक और संस्कृत रसिक लोगों के उपयोगी है २ य मान सिंह की बंश परम्परा यह है, राजा भारमल ( वा मारामल्ल ) राजा भागवद्दास वा भगवन्तदास राजा मानसिंह। ३ य श्रीरू- पगोस्वामी और श्री सनातन गोखामी की प्रशंसा जैसी आज काल है वैसी तीन सौ बरस पहिले भी थी लोग आधुनिक कीर्ति कल्पनान समझे। एम लिपि के निकटही जगमोहन को हार के ठीक सामने भूमि पर एक