४४ ] वीधसत का श्लोका जो सारनाथ की धमेश्व में मिला था । ७ ये धर्महेतु प्रभवाहेतुतेषां तथा गता झवदत् तेपांचयो निरोध एवंवादी महाश्रमणः । बिहार के ज़िले में बहुतेरी प्राचीन बौध सूरतों पर यह लोक खुदा हुआ है, बरन राज ग्रह के प्रसिद्ध जैन मन्दिर में में। जो बस्ती में है एका सूर्ति पर यही लोक खुदा है, और एसी कारण हम उस की प्राचीन बौध- मतो अनुमान करते हैं। जेनरल का निंगहाम माहिब ने जो दो हज़ार बरम के लगभग पुराने राजा बासुदेव की अथवा राजा वासुदेव के संवत् नव्वे में बनवाई महाबीर खामी की मति मथुरा में पायी है उस पर ८० का अंक लिखा है जेनरन्त साहिब ने जो उस मर्ति पर से हफी का छापा निया है उस के एक (पहने) टुकड़े में (मिदों नमो अरहत सहाबीरस्य ... ... राजा वासुदेव स्य संवसरे ८०) लिखी है अफ मोम है कि हफों के घिम जाने के सबन इस से अधिक उम्र की इबारत पढ़ी ही नहीं जा सकती है। जिन्ता गया के पमिद्ध स्थान देवमंगा में एक मूर्य का मन्दिर है उस पर यह सोका खुदा है इस लेग्व से अत्यन्त आश्चर्य होता है कि इतने दिनों का लेख वर्तमान हो । शून्यव्योमनभोरसेंटुकार होने द्वितीयेयुगे । माघे वागा तिथी शिते गुरुदिने, देवोदिनेशालयं ॥ प्रारंभेषदांचयै रचयितं सौख्या दिला यांसवी । यस्या सौ त्सनराधिप: प्रसुतया नो कोविशोकोसुवि ॥ अर्ध-दूमरे युग अर्थात् रेता युग के १. १६००० वर्ष बितने पर माघ शुक्ल पंचमी गुरुवार के दिन ऐलपुरुरवा जो वुध से एला में उत्पन्न हुअा था उसने पाषाणादिकों मे दिनेश अर्थात् मर्यका मंदिर बनाना प्रारंभ किया था जब यह राज्य वारता था तब इसको भुता से सब पूजा भूमि में सुखी थी।
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