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पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२२९

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[ २ ] रनों का हार लेना है, और जो कुछ मैं कहता हूं, सो यहां के कई पंडितों को भी मालम होगा । इम पर यदि पंडित लोग कहें कि यह लोक पुराना है तो तुम तो रत्नों का हार मिल जायगा नहीं नर नोक का अच्छा पारि- गोषिक मिलेगा। उम कवि ने कालिदास को बताई हुई युक्ति की मानमर वैसा ही शोक बनाया और जब उस को राज मभा में पढ़ा त कबिमंडल चुप चाप हो रन्ग और उस कवि को बहुत मा धन मिला। (२) एवा समय कालिदाम के पास एक मढ़ ब्राह्मण आया और कहने लगा, कि कविराज मैं अति दरिद्रो ई, और सुभ में कुछ गुण भी नहीं है, मुझ पर आप कुछ उपकार करें तो मला होगा । कालिदास ने कहा, अच्छा हम एक दिन तुम को राजा के पास ले चलेंगे भागे तुम्हारा प्रारब्ध । परन्तु रीति है कि जब राजा के दर्शन निमित्त जाते तो कुछ मेंठ ले जाया करते है* इम लिये मैं जो ये सांटे के चार टुक- डे देता हूं सो ले चलो। ब्राह्मण घर लौटा और उन सांटे टुकड़ों को उस ने धोतो में लपेट रक्खा । यह देख किसी ठग ने उस के बिन जाने उन टुकडों को निकाल लिया, और उन के बदले लकड़ो के उतने ही टुकड़े नांध दिए । राजा के दर्शनों को चनने के ममय ब्राह्मण ने मांटे के टुकड़ों को नहीं देखा जब सभा में पहुंचा तब यह काष्ट को भेंट राजा को अर्पण की। राजा उन को देखते हो बहुत क्रोधित हुआ। उस समय कालिदास पास ही था उम कहा महाराज इम ब्राह्मण ने अपनी दरिद्ररूपी लडकी आप के पाम ला कार रक्खी है इस निये कि उम को जला कर इम ब्राह्मण को श्राप सुग्री करें ! यह बात कवि के मुख से सुनते ही राजा बहुत प्रसन्न हुआ, और उस वाझग्य को बहुत धन दिया। (३) एक समय राजा भोज कालिदास को साथ ले वनक्रोडा के हेतु 'अरण्य को गए, और घूमते २ थके मांदे हो, एक नदी के किनारे जा बैठे। इस नदी में पत्थर बहुत थे, उन पर पानी गिरने से वडा शब्द होता था। उस समय राजा ने कालिदाम से विनोद करके पुछा, कि कविराज यह

  • गजा कन्चा ज्ये तिपो, वैद गुरुमुर सिद्ध ।

भरे हाथ इन पै गण, होय कार्य सब सिद्ध ॥