पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२३०

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[ १३ ]. नदी क्यों गेती है ? कान्तिदास ने उत्तर दिया, कि महाराज लोटे ही पन में अपने मैके से ससुरान को जाती है। ____ कालिदास के प्रसिद्ध ग्रंथ शकुंतना, विक्रमोर्वशी, मालविकाग्निमित्र, और मेवदूत हैं । शकुंतला बचत वर्णनोय घ है। उम का उल्था यरप में सब देशों माषाओं में हो गया है । एक समय कविबर कालिदास अपने मकान में बैठ कर अपने प्रिय पुत्र को अध्ययन कराता था, उमी ममय क्षत्रिय कुन्न सुषण शकारि विक्रमादि- ता संयं ग से आ गए । कबिर कालिदाम ने महाराज को देख प्रिय पुत्र का पढाना छोड कर शिष्टाचार को रीति से महाराज का श्रादर सान किया। जब क्षत्रियकन्न भषगा राजा विक्रमादिताने पढाने को प्रार्थना की तंब फिर अध्ययन कराना प्रारंभ किया उस समय कविवर कालिदास अपने प्रिय पुत्र को यही पता था कि राजा अपने देसही में मान पाता है और बिहान का मान सब स्थान में होता है। महाराज इस प्रकार की शिक्षा को सुन- कर अपने मन में कुतकं करने लगे कि कविराज कालिदास ऐसा अभिमानी पंडित है कि मेरेही सामने पंडितों की बड़ाई करता है और राजापी की वा धनवानो को वा सुनोचा रखता है। मैं पंडितों का विशेष प्रादरमान करता हूं और जो मेरे वा गजाओं के वा धनवानों के यहां पंडितों का प्रा. दर नहीं तो कहां हो सकता है। ऐसा कुतर्क करते हुए अपने घर पर गए। महाराज वक्रमादिता ने कविवर कालिदाम को जो धन सम्पति दो यो उसको हरने के लिये मंत्री को प्राज्ञा दी। संत्री ने वैसाही कियों जैसा महाराज ने कहा था। कविबर कालिदास की जीविका नब इरली गं तब दाखो होकर अपने बाल बच्चों के साथ अनेक देशों में भटकता अंत में कर नाटक देश में पहुंचा । करनाटक देशाधिपति वडा पंडित और गुग्णग्राहक था उसके पास जाकर कविवर कालिदास ने अपनो कविता शक्ति देखाई। तो उन पर करनाटक देशाधिपति ने अति प्रसन्न होकर बहुत मा धन और भूमि कर उसने अपने राज्य में रक्खा । कविबर कालिदास राना से सन- मान पाकर उस देश में रह कर प्रतिदिन राजसभा में जान लगा वहां राजा के सिंहासन के पास ऊंचे 'मासन पर बैठ सव राज काजी में उत्तम मलाइ देने लगा। और अनेक प्रकार की कविताओं से सभासदों के मन की कली खिलाता ना सुख से रहने लगा। जब से कविवर कालिदास की