पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। १८ । चन्द्र ग्रहण में पुत्र प्राप्ति के हेतु इन्हों ने यज्ञ भी किया था। कहते हैं स्वप्न में शेष जीने दर्शन देकर इन को आज्ञा किया कि हम तुम्हारे घर में अवतार लेंगे। तदनुमार श्री रामानुजाचार्य का केशव को घर चैत्र सुदी५ को जन्य हुआ । लक्ष्मण अर्य और रामानुज यह दो नाम इन का रक्खा गया । सो- लहवें वरस रक्षकाम्बा नामक स्त्री के साथ इन का विवाह हुआ । विवाह के पीछे केशव. जी मर गए। तब रामानुज स्वामी विद्या पढ़ने को कांचीपुर गए और वहां यादव नामक प्रसि- पंडित के पास विद्या पंढने लगे। जिन दिनों खामी वहां विद्या पढ़ते थे उन्ही दिनों में कांचीपुर के राजा की कन्या को ब्रह्मपिशाच की बाधा हुई। रामानुज खासी ने अपना पैर छुला कर उस की पिशाच बाधा दूर कर दी। इस से प्रसन्न होकर राजा ने उन को बहुत सा द्रव्य दिया । उसी काल में खामी के मौसा गोबिन्द नामक एक वडे पंडित यादव पंडित से शास्त्रार्थ करने आए और रामानुन खामी का और इन का मत विषयक एक विश्वास होने से दोनों में अत्यन्त प्रीति हुई । यादव पंडित जो वास्तव में माया वादी थे गोविन्द पंडित और खामी से वाद में वारम्बार पराभूत होने से इस कुविचार में फंसे कि किसी भांति खामी के प्राण हरण लिए चाहिए । इसी वास्ते प्रगट में बहुत नेह दिखला कर स्वामी को साथ लेकर यात्रा के बहाने से प्रयाग की ओर चले। मार्ग में गोंड़ा के जंगल में गोविन्द पण्डित ने खासी से यादव को सव कु- प्रबत्ति कह दिया । स्वामी भयभीत होकर जंगल में छिपे। वहां उस जंगल के देवता नारायण हस्त गिरिनाथ ने लक्ष्मी समेत व्याधमिथुन बन कर द. र्शन दिया और अपनी रक्षा में नन को कांचीपुर ले पाए । इसी समय रंगपुर में यामुनार्य नासक एक निदण्डो सन्यामी थे उन को सर्ब लक्षण संपन्न एक शिष्य करने की इच्छा हु । उन्हों ने अपने चेलों को चारो ओर सेजा कि एक सर्व गुणा संयुक्त लड़का खोज लाओ। उन शिष्यों ने आचार्य से जाकर रामानुज खामी का कुल गुण विद्या रूप आदि का [ वर्णन किया। गोविन्द पण्डित इस समय काल हस्ति नगर में पा बसे और वहां एक शिव स्थापन कर के अध्यापन कराने लगे। यादव भी प्रयाग से कांची फिर आए और खासी का दैवी प्रभाव देखकर शिष्यों के द्वारा उन से मैत्री करके रहने लगे।