पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३१ ] शीर में प्रवेश किया और अग्नि शान्त होने के लिये नृमि की स्तुति गोहसिंह ने प्रसन्न होके वरदिया वहां से सरस्वति के स पाये, और उ- राको जो लिया और उसके साथ लेकर शृंगपुर में पाये जिसको पव शृंगेरी वाहते है और ज तुंगभटा के तीर पर है उसी स्थलपर सरखति को स्थापना की और भारति संप्रदाय को शिष्य परमपरा करने की रीति स्याएन की। शंकराचार्य की गुरुपरमपरा इस प्रकार से नखो है पहिले नारायण फिर वह्या वशिष्ठ श कि पराशर न्यास शुक गौडपाद गोविन्द योगिन्द्र श्री शकाराचा उनके १२ सुख्य शिष्य हुए उनके नाम पहिने लिख पाये हैं। ___ मृगेरी में १२ वरमा रह कर कांचीपुर में गये वहां कामाक्षी देवी को स्थापना को और कांची का नगर बसाया और. विष्णुकांचि में वरदराज विष्णु का और शिवकांची में शिव का मन्दिर बनवाया और अवताम्रपर्णी नदी के तोर पर रहने वाले लोगों को शिष्य किया प्रायः सव भारत वर्ष में पुनको शिष्यशाखा फैलो ॥ श्री शंकराचार्य जोने व्यास रात्रपर प्रहैत भाषा और दस महीपनिषदो और गीता पर भी भाष्य बनाये और कई एक ग्रंय बनाये हैं वे सव अव तक मिलते हैं इनका मन यह था कि इस प्रपञ्च में ब्रह्म को छोड कर जो कुछ दिखाई देता है सब मिथ्या है सव ब्रह्म रूप है और ईश्वर और जीव एक ही है इत्यादि उनके ग्रंथों को देखने से जान पडता है इसी लिये किमी मत को जिममें ईश्वर की सत्तामानी जाती है सर्वथा खंडन नहीं कियाँ नास्तिक मत को छोड कर सन मतों को स्थापन किया और ३२ बरम को बय में परलोक कोचले गये शक्ति संगम तंत्रादिक ग्रंथों में तो १६ ही वर्ष लिखे हैं परन्तु शंकर विजयादि प्रथों से ज्ञात हुआ कि जो ऊपर संख्या लि- खो है ठीक है क्योंकि इतना सत्य इतने थोडे समय में नहीं हो सकता इन की कोर्ति अब तक म्स भारत वर्ष में चली जाती है और प्रायः यहां के लोग भो इसी सत पर चली हैं। __ मैं ने शंकराचार्य का जीवन वृतान्त बहुत संक्षेप-से लिखा है यदि इस में कहीं शीघ्रता के हेतु भूल हो तो पढ़ने वाले उस पर क्षमा करें क्योंकि शास्त्र में लिखा कि भाति पुरुष का धर्म है।