मा कविश्री जयदेव जी का जीवनचरित। .. पायदेव जी की कविता का अमृत पान कर को दस चकित मोहित और चूर्णित दौक नहीं होता और किस देश में कौन सा ऐसा विज्ञान है जो कुछ भी संजन घालता हो और जयदेव जो की काव्य माधुरी का प्रेमी न हो। जयदेव जी का या अभिमान कि अंगूर और अख की मिठास उनकी कावि- ना कोपा फीकी है सल सत्य है। इस मिठाई को न पुरानी होने का भयं हे पीटी कार मिठाई है पर नमशीन है यह नई बात है । सुनने पढ़ने की बात पर गरी का गुड़ है। निर्जन में जंगल पहाड़ में जहां बैठने को विछीना मी सोमा गीतगोविन्द न जानन्द सामग्री देता है, और जहां कोई लिन रसिधा मलीन हो वहां यह सब छ बन कर साथ र. पता है। जहां गीतगोविन्द है वहीं वैष्णवगोष्टी है, वहीं रसिक सलाज है, पही बदाबन है बही घेख सरोवर है, वहीं भाव समुद्र है, वहीं गोलीक है सौर वहीं प्रल मशानद है। पर यह भी कोई जानता है कि इस परना रश मेक सर्वस्व म्हार समुद्र के जनका जयदेव जी कहां हुए ? कोई नहीं धावता जोर न सकी तीज कारता । प्रोफेसर लैसेन ने लैटिन भाषा में और वा को पिलिपल बावन साहब ने अरेजी में गीतगोविन्द का अनुवाद किया परन्तु दाथिका जीवनचरित्न वाष्प न लिखा लेवल इतना ही लिख हिया कि म १९५० को लगमन जयदेव उत्पन्न हुए थे। किन्तु धन्य है बाब राजनीलाल गुरु को चिन्हों ने पहिले पहल इस विषय में हाथ डाला और अयंदेव परिष" नामका एक छोटा सा पन्य इस विषय पर लिखा। यहाभि समया निर्णय फोर जीवन चरित्र में हमारे उनकोसत में अनेक मनैक्य है . लघापि उनको पप से हम को अनेक सहायता मिली है यह बुलायाण्ड से स्वीकार करना होगा-बोट खने कोई संशय नहीं कि उन्हीं को अन्य से हमा- सी एचि को विषय को लिखने पर प्रवल लिया है। ' बीरभूमि ने शायः बस कोस दक्षिण * अजयनद के उत्तर किन्दुविख्या गांव में शोजयदेवजीने जन्म अइन किया था। म जयनह भागीरयो का करद है। यह भागलपुर जिला के दक्षिण छ नि. कासकार होताख परगने के दक्षिण भाग दक्षिण की श्रोत और फिर बईमान और बोलिको जिले को बीच में से पच्छिम को श्रीर बहार वाटवा दो पास भागीरधी से मिला है। (ज० च० बंगदेश बिधारन)। . सिन्दुपिल्स बीरभूमि को मुख्य नगर सूरी से नौ कोल है। यहां नोराया
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