पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२५६

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| ४१ ] जिनके सभा में गीत गोविन्द गाया जाता था क्योंकि भाकारि विक्रम के अने- क मौ वर्ष पश्चात् जयदेव जी का जन्म है। हां कलिङ्ग कार्णाट प्रति देश के राजाओं को सलामें पूर्व में गीतगोविन्द निस्सन्देह गाया जाता था । बरच्च जोनराज ने अपनी शाजतरंगिणी में लिखा है कि श्रीहर्ष जब क्रम स्लरोवर के निकट भ्यमण करते थे उन दिनों गीतगोबिन्द उनकी सभा में गाया जाता था। ___ कहते हैं कि "प्रिये चारुशीले" इस अष्टपदी में "स्मरगरल खण्डनं मम शिरसि मण्डनं" इस पद के आगे जयदेव जो की इच्छा हुई कि "देहि पद पल्लव सुदारं' ऐसा पद दें किन्तु प्रभु के विषय में ऐसा पद देने को उनका साहस नहीं पड़ा इससे पुस्तक छोड़ कर आप स्नान करने चले गए। भक्तव- सल, भक्त मनोरथ पूरक भगवान इस समय स्नान से फिरते हुए जयदेव जी के बेश में घर में आए । प्रथम पद्मावती ने जो रसोई बनाई थी उसको भो- जन किया तदनन्तर पुस्तक खोल कर " देहि पद पल्लवसुदारं" लिख कर शयन करने लगे। इतने में जयदेव जी आए तो देखा कि पतिप्राणा पद्माव- ती जो बिना जयदेव जी को भोजन कराए जल भी नहीं पीती थीं वह भी- जन कर रही है। जयदेव जी ने भोजन का कारण पूछा तो पद्मावतीने प्रा- स्वयं पूर्वक मच हत्त कहा। इस पर जयदेव जी ने चाकर पुस्तक देखा तो "देहि पद पल्लवमुदारं" यह पद लिखा है। वह जान गए कि यह सब चरित्र उमो रसिकशिरोमणि भत्ता वत्सल का है इससे आनन्द पुलकित हो कर पद्मावती की थाली का अन्न खा कर अपने को लतार्थ माना । कहते हैं कि पुरी के राजा साविकराय ने ईर्षापरवश होकर एक जय. देव जी को कबिता की भांति अपना भी गीतगोविन्द बनाया था। एस झ- गड़े को निवटाने को कि कौन गीतगोबिन्द अच्छा है दोनों गीतगोबिन्दी को पण्डितों ने जगन्नाथ जी के मंदिर में रख कर बन्द कर दिया। जब यथा समय हार खला ती लोगों ने देखा कि जयदेव जी का गीतगोबिन्द श्री ज- गन्नाथ जी के हृदय में लगा हुआ है और राजा का दूर पड़ा है यह देखकर राजा भात्महत्या करने को तयार हुधा तब श्रीजगन्नाथ जीने उसके सबो- धन के वास्ते आजा किया कि हमने तेरा भी अङ्गीकार किया शोच मत कर । गीतगोबिन्द अङ्गरेज़ी गद्य में सरविलियम जोन्सकृत पद्य में पानरल्ड साहब कृत लैटिन में लासिन कत, जर्मन में कमार्ट हात, ऐसे ही निक