H४६y और विध्याचल में कागाभूति पिशाच की देख कर अपना पूर्व जन्म स्मरण वार के उमसे सब कथा कह कर बदरिकाश्रम में जा कर योग से अपनी गति को गया और शाप मे छूटा । गन्धर्व से भी पहिले जन्म में यह गंगातीर के ग्रहार नासक ग्राम में गोविन्ददेव ब्राह्मण अग्निदत्ता नाह्मणों का पुत्र देवदत्त था और प्रतिष्ठानपुर के राजा की कन्या से विवाह किया था उस कन्या ने पहिले दांत में फल दबा कर उस को संकेत बताया था इससे जब वह ब्राह्मण बरदान पा कर शिव गण हुआ तब उस की स्तो भी जया प्रतिहारी हुई। इस दाथा के व्याख्यान से यह स्पष्ट होता है कि वर्णन नंद के राज्य के समय का है और उस समय के देवता शिव और स्कन्ध थे और व्याकरण का बडा प्रचार था कातंत्र काम्नाप एन्द्र पागिनी इत्यादि मत में परस्पर वडा विरोध था संस्कृत प्राकृत पैशाची और देश भाषा बहुत प्रसिद्ध थी परन्तु पांच और मापा भी प्रचलित थीं, पाटलिपुत्र नया बसा था, प्रतिष्ठान पुर पौर अयोध्या भी बहुत बसती थी, धूर्तता फैल गई थी और हिन्दुस्तान में पश्चिम देश बहुत मिला हुआ था इत्यादि। ___ इस वहत्वाथा में ऐसे हो गुणाढ्य कवि के भी तोनों जन्म लिखे हैं और उसका हत्कथा का पैशाची भाषा में निर्माण करना उस में छः लारन ग्रंथ जला देना और एक लाख ग्रंथ नर बाहन दत्त के चरित्र का राजा शात वाहन को देना इत्यादि मविस्तर वर्णित है। पादयते-लात मारता है। ८ लोग बहुत भावुक थे। मिशब्दो ग्रन्यान्त मङ्गलार्थ-ग्रन्य के अन्त में । सिद-ऐसा लिखो क्योंकि यह मङ्गल है। ८ तपस्यतिगी:-गाय उठी है। १० महल बना करते थे। कुटीयति प्रासादे । महल में बैठ कर सोपड़ी ससुझता है। ११ भिक्षुक लोग राजा के पास जाया करते थे भिक्षु कः प्रसुसुपतिष्टते । १२ मल्ल युद्ध हुआ करता था। आयते-सैदान में खड़े होकार पुकारना। नहीं तो आहुयति। १३ खिराज दिया जाता था। करं बिनयते-कर देने को निकालता है । १४ शास्त्र की चर्चा रहा करती थी । शास्त्र व दते शास्त्र में बोल सकता है।
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