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पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२६२

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अच यह वृहत्कथा कब बनी है और किसने बनाया है इस के विचार में चित्त बहुत दोलायित होता है क्योंकि इस का कान्त ठीक निर्णीत नहीं होता। नंद के समय की भी नहीं मान सकते क्योंकि इसो हत्कथा में वि. क्रमादित्य उदयन ऐसे पाचोन नवीन अनेका राजाओं का वर्णन है परन्तु पू. तना कह सकते हैं कि इस का मून्त प्राचीन काल से पड़ा है और उस को अनेक काल में अनेक कवि बढ़ाते गर हैं क्योंकि “कान्वायना कतिः, तत्- पुष्पदंतादिभिः" इतग्रादि पदों में आदि शब्द सिलता है। अनेक प्राचीन सुनो हुई कथानों को किसी ने एकत्र कर के आदर के हेतु उस में पुष्पदंत का नाम रख दिया हो तो भी आश्चर्य नहीं क्योंकि कातपायन बररुचि का होना खोस्ताब्दीय के १२० बर्ष पूर्व लोग अनुमान करते हैं और विक्रम का काल पण्डितों ने ५०० झीस्ताब्द के लगभग निश्चय किया हैं और ऐसा मा. नने से प्रोफमर गोन्लडसकर इत्यादि इतिहास बत्तानों का दो बररुचि मानने वाला मत भी स्पष्ट खंडित होता है क्योंकि हत्कथा में जब विक्रम का चरित्र है तब उसो विक्रमादिता वाले वररुचि का नाम कातायन संभव है।

परत हमारा कथन यह है कि संस्हात हहत कथा गुणाव्य को बनाई ही नहीं है क्योंकि उस में स्पष्ट लिखा है कि गुणाढ्य ने संस्कृत बोलना छोड़ दिया था इस्से पिशाच भाषा में वृहत्कथा बनाया तो इस दशा में संभव है कि किसी ने यह वृहत्लाथा बना कर बरकचि गुणाब्य पुष्पदंत इत्यादि का नाम अादर और प्रमाण पाने के हेतु र रच दिया हो।

अब जी हहत्कथा मिलती है वह तीस हजार लोक में रामदेवभट्ट के पुत्र सोमदेवभट्ट को भनाई है जो उस ने कश्मीर के राजा संग्रामदेव के पुत्र अन- न्त देव को रानी सूर्यवती के चित्त विनोद को हेतु बनाई है और इसी अनन्त- देव के पुत्र कमलदेव हुए और कासलदेव के पुत्र श्री हर्षदेव हए ।

कश्मीर के इन राजाओं के नाम चित्त को और भी संशय में डालते हैं क्योंकि रलावली वाला श्रीहर्ष कालिदास दो पहिले का है क्योंकि कालि- दास ने मालविकाग्नि मित्र में धावक का वि का नाम प्राचीन कवियों में लिखा है अब इस दशा में विरोध का परिहार यों हो सकता है कि जिस विक्रम का चरित्र वृहत्कथा मे है वह नवरत्न वाला विक्रम नही किन्तु कोई प्राचीन विक्रम है। और यह वृहत्कथा धाव के थोडे हो कान्न पहिले कश्मीर में सोमदेव ने बनाई है क्योंकि इस में नन्द और विक्रम के नाम की भांति