सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ८७ ]


भोज कालिदास इत्यादि का नाम नहीं है और नवरत्न वाला बरचि दसरा था क्योंकि उस काल में राजा और कवियों को वही नाम बारम्बार होते थे इस से वृहत्कथा संवत और खिस्तसन के पूर्व बनी है और गुणाढ्य और वर- क्षचि कुछ इससे भी पहिले के हैं।

परन्तु हहत्वाथा के किमी लेख का हम प्रमाण नहीं करते क्योंकि यह बड़ा ही संगत ग्रन्थ है। जैसा अनन्त पंडित की बनाई सुद्राराक्षस की पूर्व पीठिका में नन्द का नाम सुधन्वा लिखा है और इसमें योगनद है उस में जो वररुचि के मंत्री होने का प्रसंग है वह इस पीठिका में कहीं मिलताही नहीं और पाणिनी वर्ष, कात्यायन, व्याड़ि, इन्द्रदत्त भौर अनेक व्याकरण के आचार्य हहत्कथा के मत से एक काल के थे पर बुद्धिमानों ने इन सब के काव्य में बड़ा भेद ठहराया है इस से इतिहास विषय में वृहत्वाथा अप्रमाणिक है।

वृहत्वाथा का वर्णन और गुणाढ्य इत्यादि कवियों का वर्णन आया स- प्तशती बनाने वाले गोवर्धन कवि ने किया है और गोवर्धन कवि का काव्य जयदेव जी के काल से निश्चित होगा बंगाली लेखकों ने जयदेव जी का समय पन्द्रहवां शतक ठहराया है पर इस निर्णय में परम ांत हुए हैं क्योंकि जयदेव जी का कान्ल एका सहन बर्ष के पर्व है और इसमें प्रमाण के हेतु पृथ्वीराज रायसा में चंद कवि का जयदेव जी का और गीतगोबिन्द वर्णनही प्रमाग है । जयदेव जी ने गोवईन कवि का वर्णन बर्तमान क्रिया से किया है इसमे अनुमान होता है कि उस काल में गोबर्धन कांव था ब- गान्ती लोगों में कोई वारहवें शतक में लक्ष्मन सेन के काल में जयदेव को मानते हैं और उसके समकालीन गोवर्धन इतत्रादि कवियों को लक्ष्मन सेन को सभा को पञ्चरत्न मानते हैं यह बात भी असम्भव है क्योंकि पृथ्वीराज ग्यारहवें शतक में था और चन्द भी तभी था तो जयदेव के चन्द के सैकड़ों वर्ष पहिले निस्सन्देह हुए हैं क्योंकि चन्द ने प्राचीन कवियों की गणना में वड़ी भक्ति से जयदेव जी का वर्णन किया है, हां यदि लक्ष्मन सेन को पृथ्वी- राज के पहिले मानो तो जयदेव उस के सभा के पण्डित हो सकते हैं नहीं तो समझ हो कि आदर के हेतु इन कवियों का नाम लक्ष्मन सेन ने अपनी सभा में रक्खा है इस्म चन्न सखि साजं की भाषा और अगरेजी इतिहास वेत्ताश्रीं का मत लेकर बंगालियों ने जयदेव जी का जो काल निर्णय किया है वह अप्र. माण है यह निश्चय हुआ और वृहत्कथा उस काल वो भी पहिले बनी है यह भी सिद्धान्तित हुआ।

———————