[ ५१ ] जी गोपीनाथ जी के पुत्र श्री पुरुषोत्तम जी पर उनके भाग वंश नहीं, श्रीवि- ठुन नाथ जी के सात पुत्र जिनमें बड़े गिरधर जी और छोटे पुत्र यदुनाथ जी का वंश अब तक बर्तमान है, इनका सत शुद्धाद्वैत अर्थात् जगत ब्रह्म के सच्चि- त रूप से अभिन्न और सत्य परन्तु अति विना ब्रह्म खरूप का ज्ञान फल दायक नहीं परमोपास्य श्रीक्षषण और विष्णुखामी परमाचार्य, साधन सेवा मुख्य, प्रमाण नथ, वेदव्यासमूत्र, गीता और भागवत । तिलक दो रेखा का लाल जई पंड शंख चना शीतल ॥ आचार्यने अणुभाष्य, तत्वदीप, निबन्ध, रसमंडन, श्री सद्भागवत पर सुबो- धिनी टीवा, सिद्धान्त सुक्तावली, पुष्टिप्रवाह मर्यादा, पुरुषोत्तम सहस्र नाम, सिद्धान्त रहस्य, अन्तः करण प्रबोध, भक्ति प्रकरण, नवरतन, बिवेक धैर्याश्रय, पत्नावलम्वन, कृष्णाश्रय, भक्तिवानी, जलभेद सन्चासनिर्णय, जैमिनी सूत्र- भाष्य, चित्तप्रबोध, निरोधलक्षण, व्यासबिराध लक्षण, परिढ़ाष्टक और वैद्यबल्लभ ये चौवीस ग्रथ बनाये हैं जिन में दोनों सूत्रों का भाष्य और भागवत की टीका बहुत बड़े ग्रंथ हैं। सूरदास जी का जीवन चरित्र । दोहा-हरि पद पंकज मत्त अन्ति, कविता रस भर पूर । ___दिव्य चक्षु कबि कुल कमन्त, सुर नौमि श्री सूर ॥ सब कवियों के वृत्तान्त में सूरदास जी का वृत्तान्त पहिले लिखने के योग्य है क्योंकि यह सब कवियों के शिरोमणि हैं और कबिता इन की सब भांति की मिलती है कठिन से कठिन और सहज से सहज इन के पद बने हैं और किसी कबि में यह बात नहीं पाई जाती और कबियों की कविता में एक एक बात अच्छी है और कबिता एक ढंग पर बनती है परन्तु इन की कबिता में सब बात अच्छी है और इन की कविता सब तरह की होती है जैसे किसी ने शहनशाह अकबर को दरबार में कहा था। दोहा-उत्तम पद कबि गंग को, कविता को बल बीर । केशव अर्थ गंभीर को, सूर तीन गुन धीर ॥ और इसके सिवाय इन की कनिता में एक प्रासर ऐसा होता है कि जी में जगह करै जैसे एक बार्ता है कि किसी समय में एक कवि कहीं जाता था
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