गोसाई (१०) ने मेरी अष्ट (११) छाप में थापना की। इत्यादि । इस लेख से और लेख अशुद्ध मालूम होते हैं क्योंकि जैसा चौरासी वार्ता की टोका में लिखा है कि दिल्ली के पास सीही गांव में इन का दरिद्र माता पिता के घर इन का जन्म हुआ यह बात नहीं आई । यह एक बड़े कुल में उत्पन्न थे और प्रागरे वा गोपाचल में इन का जन्म हुआ। हां यह मान लिया जाय कि सुसल्मानों के युद्ध में इतने भाइयों के मारे जाने के पीछे भी इन के पिता जीते रहे और एक दरिद्र अवस्था में पहुंच गए थे और उसी समय में मीही गांव में चले गए हों तो लड़ मिल सकती है । जो हो हमारी भाषा कविता के राजाधिराज सूरदास जी एक इतने बड़े बंश को हैं यह जान कर हम को बड़ा प्रानन्द हुआ । इस विषय में कोई और विहान जो कुछ और विशेष पता लगा सके तो उत्तम हो । भजन-प्रथमही प्रथ जगते में प्रगट अद्भुत रूप । ब्रह्मराव बिचारि ब्रह्मा राखु नाम अनूप ॥ पान पय देवी दियो मिव त्रादि सुर सुख पाय । कह्यौ दुर्गा पुत्र तेरो भयो अति अधिकाय ॥ पारि पायन सुरन के सुर सहित अस्तुति कीन । तासु बंस प्रसिद्ध मैं भौचन्द चारु नबीन ॥ भूप पृथ्वीराज दीन्हो तिन्हें ज्वाला देस । तनय ताके चार कीन्हो प्रथम श्राप नरेस ॥ दूसरे गुनचन्द ता सुत सीलचन्द सरूप । बोरचन्द प्रताप पूरन भयो अद्भुत रूप ॥ १० ‘गोसाई' श्री विठ्ठल नाथ जी श्री वल्लभाचार्य के पुत्र । ११ अष्ट छाप यथा सूरदास, कुन्भनदास, परमानन्ददास और कृष्णदास ये चार महात्मा आचार्य जी के सेवक और छोत खामि गोबिन्द स्वामि, चतर्भज दास और नन्ददास ये गोसाई जी के सेवक । ये आठो महा कवि थे । दोहा-श्री चवल्लभाचार्य के, चारि शिष्य सुखरास । घरमानन्द अरु मर पुनि, कृष्णरु कुंभन दास ॥ १ ॥ बिट्ठलनाथ गोसाई के, प्रथम चतुर्भुज दास । छीतस्वामि गोबिन्द पुनि, नन्ददास सुख बास ॥ २ ॥
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