रत्नभार इमोर भूपत संग खेलत प्राय । तासु बंस अनुप भो हरिचन्द प्रति विख्याय ॥ प्रागरे रहि गोपचल में रही ता सुत बीर । पुत्र जनमें सात ताके सहा अट गम्भीर ॥ हष्णचन्द उदारचन्द जु रूपचन्द सुभाए । बुद्धि चन्द प्रकाश चौथौ चन्द से सुखदाइ ॥ देवचन्द प्रबोध संसृत चन्द ताको नाम । भयो सप्तो नाम सरज चन्द मन्द निकाम ॥ सो सम्मर करि स्याहि सेवक गए विध के लोग । रहो सूरज चन्ददृगते हीन भर बर सोक ॥ परो कूप पुकार काहू सुनी ना संसार । सातए दिन आइ जदुपति कीन पापु उधार ॥ दियो चग्न दै कही सिसु मुनु मांगुबर जो चाइ । ही कही प्रभु भगति चाहतस नास सुभाइ ॥ दूसरो ना रूप देखो देखि राधा स्याम । सुनत करुनासिन्धु भारिख एवखस्तु सुधास ॥ प्रचल दच्छिन बिप्र कुलतें सत्र है है नास । अषित बुद्धि बिचारि विद्यामान माने सास ॥ नाम राखो मोर सुरज दास सूर मुश्याम । भए अन्तर धान बीते पाछली निसि जास ॥ मोहि पन सोइ है ब्रज की बसेमु खिचित थाप । थापि गोसांई करी मेरी अाठ मद्धे छाप ॥ विप्र प्रथ ज.गात को है भाव भूरि निकाम । सूर है नदनन्द जू को लयो मोल गुलाम ॥ सुकरात का जीवन चरित्र । इतिहासों से. प्रगट है कि यूनान देश प्राचीन काल में हर तरह की विद्या शिल्प विज्ञान आदि के लिये अति प्रसिद्ध था बरन हर एक बिद्याओं को खान या उत्पत्ति भूमि कहा जाय तो कुछ अनुचित न होगा वहीं के बड़े ३ बिहान और विज्ञानों से एका सुकरात सी था यह ईसाई सन् के ४०१
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