सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/२७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वर्ष पहिले आसोनिया नगर में पैदा हुआ था और होनहार बिरवान के हीत चोकने पात इस कहावत के अनुसार छोटी ही उमर में अपने बाप के सौदागरी पेशे का कास भाटपट सिख सिखाय भली भांत प्रखर होगया तब यह हर तरह की बिद्याओं के सीखने में पहत्त हुअा और अपना समय यूनान देश के विद्वानों में काटने लगा जिनको सतसंग से कुछदिनों के उप- रान्त अपनी बिमल बुद्धि के कारण यह सम्पूर्ण बिद्या विज्ञान और शिल्प- शास्त्र में भली भांति कुसल हो यूनान के बड़े २ बिहान और दर्शनिकों से भी बादा विवाद में भिड़जाता था उनका पक्ष खंडन कर अपनी बात अनेक युक्तियों से सिद्ध करता था यहांतक कि कुछ दिनों में संपूर्ण यूनान भर में इस को लोकोत्तर चमत्कार बुद्धि को धूम मच गई, एक बार सुकरात का बाप कहीं बाहर सफर को जाते समय इमे चार हजार लर जो उस समय का यूनानी सिक्का था इसके निज के खर्च के लिए दे गया था परइसने उन सब रुपयों को बतौर ऋण के एक अपने मित्र को दे दिया उसने रुपये इसे फिर लौटा कर न दिए पर सुकरात ने इस बात का कुछ भी ख्याल न किया और न रुपए उम्स कभी सांगे ; मेसिडोनिया का राजा अकिलीम बहुत कुछ चाहा कि सुकरात एक बार उसे किसी बात के लिए कुछ कहे पर इ- सने कभी इस बात की ओर ध्यान भी न किया; इम बुद्धिमान हकीम मैं धीरज इतना था कि किसी तरह की तवालीफ या रंज जो इम्त पर आ- पड़ते थे तो यह किसी प्रकार और लोगों को उस मानसी व्यथा को नहीं प्रगट होने देता था ; उसको मन को सब से बड़ी अभिलापा जिसके लिए वह अत्यन्त लौन्लोन रहा किया यह थी कि जिस तरह हो सके हम अपनी जन्मभूमि को कुछ फाइदा पहुंचा सकें और सब लोग कुसाग से बच सच्चे और सीधे राह पर चलें एक दूसरे की बुराई कभी न चेते; यद्यपि इस सज्जन पुरुष ने कोई स्कूल या वाज करने को कोई जगह नहीं बनवाया पर अकसर जहां लोगों को बहुत भीड़ भाड़ रहती उन के बीच यह खड़ा हो घंटों तक सदुपदेश किया करता था और दिन रात मनसा बाचा कर्मया अपने देश के लोगों के हित में तत्पर रहा; हकीम अफलातून सुकरात का बहुत बड़ा शामिंद था सरती बार सुकरात ने तीन दांत के लिये अपनी प्रसन्नता प्रगट को और हाथ जोड़ कर कहा हे जगदीश्वर मैं तुझे कोटि कोटि धन्यवाद देता है कि तूने सुझो बातों को सर्ग समझने की बुद्धि दी यूनान ऐसे देश में