यह कहलाया कि महाराज जंगबहादुर भी हिन्दुस्तान में एक मनुष्य है पर्वोक्त महाराज ने १८७७ फरवरी को पचीसवीं तारीख को बीर पम् भारत समि को पुत्र शोक दिया यों तो अनेक जननीयौवनकुठार नित्य जनमते और मरतेही हैं पर यह एक ऐमा पुरुष मरा कि भारतवर्ष के सच्चे हितकारी लोगों का जी टूट गया. आदों की गहरी अंधेरी में एक दीप जो टिम २ क- र के झिलमिला रहा था वह भी बुझ गया क्या इस अभागिन भारतमाता को फिर ऐसे पुत्रहोंगे ? नीति के तो मानो ये मूर्तिमान औतार थे. ऐसे प्रदेश में रह कर जो चारो ओर भिन्न २ राज्यों से घिरा हो स्वामी की उन्नति साधन करते हुए आस पास के कठिन महाराजों को प्रसन्न रखना नीति सूत्रके परम चतुर सूत्रधार का काम है हम लोगों के भाग्य ही ऐसे हैं यह रोना कहां तक रोए । पूर्वोक्त महाराज प्रतिवर्ष की भांति दौरा करते हुए शिकार खेलते थे कि एका एक सुगौली में जो पहुंचे तो रोगाकान्त होग, कहते हैं कि उबान्त और दस्त होने से एक साथ बहुत व्याकुल हो गए और उसी समय कहारों को आता दो कि बाघमति गङ्गा पर पान की ले चलो. बड़ी महारानी सहाराज के साथ थीं और उन्हों ने अत्यन्त सावधानी से अपने जगत विख्या- त प्राण पित पति को उभय लोक साधिनी अन्तिम सेवा की. कहारों के बदले पाल को क्षत्रियों ने उठाई थी. जब नदी पर सवारी पहुंची तब दाना- दिक करके महाराज ने इस असार संसार का त्याग किया, उनके भाई जनरल रणोद्दीप सिंह बहादुर उसी समय काठमांडू गए और महाराज से एकान्त में यह शोक समाचार कहा. महाराजाधिराज ने उसी समय उनको महाराजगी का पद और उनके भाई की जो जो अधिकार प्राप्त थे सब दिए, महाराज राणोद्दीप सिंह ने बाहर आकर चालीस हजार सेना में से बीस हजार को बाहरी और सोमा के प्रान्तों पर और बीस हजार को नगर के चारो ओर उपस्थित रहने की प्राज्ञा दिया जिस से किसी प्रकार के उपद्रव की शंका न हो। इस सेना भेजने को आज्ञा केवल खकीय रक्षा के नि. मित्त थो। राजधानी में दो दिन तक यह समाचार छिपा रहा दुसरी रात्न को एक साथ यह बज्रपात सा समाचार नगर में फैल गया जिस से सारी राजधानी में महा हाहाकार फैल गया । महाराज के संग एक बड़ीरानी और दो छोटी रानी अत्यन्त प्रसन्नता पूर्वक सती हुई। कहते है कि जिन
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