[ ६८ ] महाशय ने इन को धर्मशास्त्राध्यापन का पद दिया तब से बराबर पढ़ा २ कर शतावधि विद्यार्थियों को इन्होंने उत्तम पण्डित किया जो संप्रति देणदे. शान्तर में अपने २ विद्यार्थि गण को पटा कर इनकी कीर्ति को पाससुद्रांत फैला रहे हैं। कुछ दिन हुए श्रीमान् नन्दन नगर की पाठशाला के संस्कृताध्यापक मोक्षमूलर साहिव महाशय की वनाई हुई अंगरेजी और सं- रहत व्याकरण को पुस्तक का परिशोधन और कई स्थलों में परिवर्तन किया था जिस से उत्ती साहेव सहाशय ने अति प्रसन्न होकर इनकी कीर्ति अनेक होपान्तर निवासियों में विख्यात की, यहां तक कि जव उन्न्ोंने अपने पुस्त- क को हितीयावृति छपवाई तन उसको भूमिका में लिखा कि इनके स- गान संस्क त व्याकरण जानने वाला इस होप में तो क्या संसार भर में दसरा को नहीं है। वे उक्त पण्डित वर राजारामशास्त्री संप्रति पांच चार वर्ष से जिरता होकर योग्याभ्यास में लगे थे और अपने दोन वांधवों का पोषण और दीने विद्यार्थि प्रकृति का परि पालन हो के हेतु अर्जन करते थे और आप माधारण ही हत्ति से जीवन करते हुए मठ में निवास करते घे संवत १८३२ श्रावण शुक्ल १२ के दिन सन्यास लेकर उसी दिन से अन्न परित्याग पूर्वक परमार्थ का अनुसन्धान करते २ मरण काल से अव्यवहित पूर्व तक मावधान- ता पूर्वक परमेश्वर का ध्यान करते २ भाद्रपद कृष्ण ३ गुरुवार को प्रातःकाल ८ बजते २ परसपद को प्रोप्त होकर यशोमानावशिष्ट रह गए। लार्ड भ्योसाहिब का जीवन चरित्र । हा। यह कैसी दुःख की बात है कि आज दिन हम उस्के सरण का वृत्तान्त लिखते हैं जिस्की सुजा की छांह में सव प्रजा सुख से काल क्षेप क- बती थी और जो इस लोगों का पूरा हितकारी था ऐसा कौन है जो इस्को पढ़कर न कम्पित होगा और परम शोक से किसकी आंखों से आंसू न बहेगें । मनुष्य की कोई इच्छा पूरी नहीं होने पाती और ईश्वर और ही कुछ कर देता है कहां युवराज के निरोग होने के आनन्द में हम लोग मग्न थे और कैसे कैने शुभ मनोरथ करते थे कहां यह कैसा विज्जुपात सा हाहाकार सुन्ने में पाया। निस्सन्देह भरतखंड के वृत्तान्त में सर्चदा इस विषय को लोग
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