कहा है कि किसी के यहां बाबूसाहिब की संग्रह की हुई २०० से अप्रशस्तियां हैं, उन को भी ला दूंगा, निदान इसी भांति जहां कहीं उस सर्वसं के भाण्डार का पता लगता है उस की प्राप्ति का यत्न किया जाता हैआशा है कि कालक्रम से अनेक अलभ्य वस्तुएं हाथ आ जायगी ।
ऊोक्त ग्रंथों के मुद्रण होने के पश्रात् नो विषय प्राप्त हुए उन को इस लिये इस खण्ड में प्रकाशित नहीं किया कि जब सब स्फुट लेख एकत्रित हो नाय तो सर्व-संग्रह का एक भाग पृथक् ही छाप दिया जाय ।
श्रीमान् भारतेन्दु के ग्रन्थों के विषय में यथार्थ प्रशंसा का दम भरना झख मारना है क्योंकि जो कुछ हम लोग न कह सकेंगे वह सब ग्रन्थ ही आप से आप पुकारेंगे परन्तु जिन अनुरक्त महानुभावों ने अपने हृदय का उद्गार प्रकटित किया है उस का गोपन करना भी कृतघ्नता है अतः निज सम्मति कुछ न लिरु कर चन्द्रकला की जहां को समालोचना प्राप्त हुई हैं उन को इस ग्रंथ के अन्त
में (६ ठां खंड के अंत में ) एकत्रित कर के रख दिया है, सहृदय उन के पढ़ने से अधिक आनन्द होगा ।
प्रकाशक.
ग्रन्थसूची ।
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