शरीर क्षत विक्षत हुआ था। किसी के प्रस्तराघात से उन का दो दांत अग्न और प्रोठ चिदीर्ण तथा ललाट और बांहु आहत हुआ था। किमी शत्रु ने उनको आक्रमन करके उनका सुख मण्डल कंकड़ मय मृतिका में घर्षन किया था उस से मुह क्षत विक्षत और शोनिताता हुआ था। एक दिन किसी ने उनको गले में फांसो लगा कर स्वास रोध्य करके उनको बध करने का उपक्रम किया था । एक दिन किसी ने उनका गला लक्ष करको करवालाघात किया था तब गहर में छपकर उन्होंने अपने प्राणकी रक्षा किया था। कई वार उनकी जीवनाशा कुछ भी नहीं थी। एक दिन उनके पिटव्य और जातिवर्ग उनको बध करने को कृत संकल्प हुए थे, उनकी प्रि- यतमा दुहिता फातिमा ने जानकर रोते रोते उनसे निवेदन किया, उस में धर्मवीर विश्वासी महम्मद अकुतोभय भाव से बोले कि वत्से मत रो, हम को कोई बध नहीं कर सकेगा, हम उपासनारूप अस्त्र धारण करेंगे, विश्वास वर्मा से आवृत होंगे । जब हजरत महम्मद को प्रहार क्षत कलेवर ओर नि:- सहाय देख कर उनके पिटव्य हमजा महाक्रोध से अबुन्न हव और अवुजो- हल प्रभृति मुहम्मद के परमशत्रु पिटव्य और टमरे २ जाति सम्बन्धियों को प्रहार करने जाते थे । उस समय वह बोले, "जिनने हमको सत्यधर्म प्रचार के हेतु मनुष्य मण्डली में रण किया है, उस सत्य परमेश्वर के नाम पर शपथ कार को इस कहते हैं, यदि तुम सुतीक्षण करवाल के द्वारा नीच बहु. देवोपासक लोगों को निहत करो और उसी भाव से हमारी सहायता करने को अग्रमर हो तो तुम अपने को शोणित में कलंकित करके पुन्यमय सत्य परमेश्वर से दूर जा पड़ोगे। ईश्वर को एकत्व में और हम उनके प्रेरित हैं इस सत्य का विश्वास जब तक न करोगे तब तक तुम को युद्ध विबाद में कोई फन्त नहीं होगा पिटव्य यदि तुम वात्सल्य रूप औषध हम को प्रदान करने चाहते हो, और हमारे आहत हृदय में आरोग्य का औषध लेपन करना चाहते हो, तो "ला इन्ताह इलेल्लाह सहश्यद रसुन्तलाह" । ईश्वर एकमात्र अद्वितीय और मुहम्मद उस का प्रेरित है ] यह वाक्य उच्चारण करो। यह सुन कर हमजा विश्वासी होकर कलसा उच्चारण पूर्वक एक ईश्वर को धर्म में दोक्षित हुए। तीन बरस शत्रु मण्डलो से अवरुद्ध होकर हजरत महम्मद को महा क्लेश से एक गिरिगुहा में काल यापन करना पड़ा था । इस बीच में न हुत से मनुष्यों ने उन वो साथ उस उन्नत विश्वास में योग दिया था
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