ने पिता की शीक्षा अनुसार महात्मा सुहम्मद के साथ बहुत अच्छा बरताव किया और इनको देश और समय के अनुसार शीक्षा दिया और व्यापार भी सिखलाया। उन्हों ने रोति मत विद्या शिक्षा किया था इस का कोई प्रमाण नहीं मिला। पचीस बरम की अवस्था तक पशु चारण के हार्य में नियुक्त थे । चा- लिस बरम की अवस्था में उन का धर्म भाव स्मृति पाया । ईश्वर निराकार है, और एका अहितीय हैं; उनकी उपामना बिना परित्राण नहीं है। यह महासत्य अरब के बहु देवोपासक आचार स्रष्ट दुर्दान्त लोगों में वह प्रचार करने को आदिष्ट हुए। तेंतान्तिम बनम की अवस्था के समय में अग्निमय उत्साह और अटन्न विश्वाम से प्रचार में प्रवृत्त हुए । “रोतः महुदा" नामक सुहंसदीय धर्म ग्रंथ में उनकी उक्ति कह कर ऐमा उल्लिखित है । "हमारे प्रति इस समय ईश्वर का यह आदेश है कि निशा जागरण करके दीन हीन लोगों की अवस्था हमारे निवाट निवेदन करो, बाल स्य शय्या में जो लोग निद्रित है उन लोगों के बदले तुम जागते रहो, सुख ग्रह में आनन्द बिह्वल लोगों के लिये अवर्षण करो" पैगवा महम्मद जब ईश्वर का स्पष्ट आदेश लाम करके ज्वलन्त उत्साह के साथ पौत्त लिकता के और पापाचार को वि- रुद्ध मखड़े हुए और ईश्वर एक मात्र अहितोय है" यह मत्य स्थान स्थान में गभीरनाद से घोषना करने लगे, उस समय वह अकेले थे, एक मनुष्य ने भी उनको सम बिश्वासी रूप से परिचित ह कर उनके उस कार्य में सहानुभूति दान नहीं किया। किन्तु उन्हों ने किसी को मुखापेक्षा नहीं किया किसी का अनुमात्र भय नहीं किया, बुद्धि बिचार तर्क की मीमा में भी नहीं गये प्रभु का आदेश पालन करना ही उनका दृढ़ व्रत था जब वह ईश्वर क आदेश में "ता इलाह एलिहाह" (ईश्वर एक मात्र अद्वितीय हैं ) इस मत्य प्रचार में प्रवृत्त हुए, तब सब अरबी लोग उनके कई एक पिटव्य और समस्त ज्ञाति सम्बन्धी निज अबन्न स्वित धर्म के विरुद्ध बाक्य सुन कर भयानक कोधान्ध हुए और जनक खदेशीय और आलोय गन "महम्मद मिथ्या बादी और एन्द्रजाति का हैं" इत्यादि उक्ति कहको उन यो प्रति और सबों का मन दिरता और अविश्वस्त करने लगे। स्वजन सब्द ब्धियों को हारा लेश अपमान प्रहार वन्वना आदि उनको जितनी सह्य करनी पड़ी थी उतनी दूसरे किसी महापुक्ष को नहीं सहनी पड़ी ! विपरीत लोगों के प्रस्तराघात से उनका
पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/३१०
दिखावट