साविया [जो इनका गोत्रज भी था] नामक शाम और मिसर श्रादि देशों
में गवर्नर था। जब अन्ती खलीफा हुए तो इस माविमा ने चाहा कि उन
को जय करके आप खन्तीफा हो। यहां तक कि अनेक युद्धों में सुसलमानों
पर अपना अधिकार जसाता गया । सन् ६६१ में पांच बरस खलीफा रह
कर अली एक दुष्ट के हाथ से मारे गए इनके प्रोछे इनके बड़े पुन और सहा-
त्मा सुहम्मद के नाती इमाम हसन खलीफा हुए किन्तु मनाविआने इन को
भी अपने राज्य लोभ से सांति २ का कष्ट देना बारम किया। उस समय के
लोग ऐसे क्रूर लोभी और दुष्ट थे कि धर्म छोड़ कर लोभ से बहुत साविया
से मिन्त गए और अपने परमाचार्य की एकमात्न सन्तति हसन हुसैन को
दुःख देने लगे। इसाम हसन यहां तक दुःखी हुए कि चार लाख साल पिन-
शन पर निराश हो कर खिलाफत से बाज आए । कुछ ऊपर छ महीने मात्र
ये खलीफा थे। किन्तु इस पिनशन के देने में भी माविआ बड़ी देर और
हुज्जत करता रहा। यहां तक कि सन् ४८ हिजरी [ ६७० ई०] में मुआ-
वित्रा के पुत्र यजीद ने इमाम हसन की एक दुष्ट स्त्री जादा के द्वारा उन को
विष दिलवाया। कहते है कि दो बेर पहिले भी इस दुष्टा स्त्री ने इस लोभ
से कि वह यजीद की स्त्री होगी इमाम को बिष दिया था किन्तु तीसरी बार
का बिष ऐसा था कि उससे प्राण न बच सके और इस अप्सार संसार को
छोड़ गए। पन्द्रह पुत्र और ८ कन्या इनको हुई थीं। अब लोग इन दुष्टों के
धर्म को देखें कि साक्षात् परमाचार्य ईखर प्रिय 'बरच ईश्वर तुल्य' अपने
गुरू की सन्तति और गुरु पुत्र और स्वयं भी गुरु उसका इन लोगों ने कैसे
प्रानन्द से बध किया।
इमाम हसन के मरने पीछे यजीद बहुत प्रसन्न हुआ और अपने राज्य
को निष्कण्टक समझने लगा। अब केवल इन लोगों की दृष्टि में इमाम हुसैन
बचे जो कि रात दिन खटकते थे क्योंकि धर्मी और श्रद्धालु लोग इनके पक्ष
पातो थे । सुआबिया और उस के साथी लोग अब इस सोच में हुए कि किसी
प्रकार इन को भी समाप्त करो तो निईन्द राज्य हो जाय । सन् ४८ के अन्त
में मुआविया सर गया और यजीद नारकी मुसलमानों का महन्त हुआ।
यह माप परस्त्रो गामो और बेईमान था इसी हेतु इस के महन्त अपने
से अनेक लोगों ने अप्रसन्नता प्रकट की मक्के और मदीने के सभ्य और अनेक
प्राचीन लोग उस को धर्म शासन से फिर गए और अनेक लोग नगर छोड़