शेड़ बार दूर जा बसे । इमाम हुसैन का तो मानो वह शत्रु, ही था मदीना
के हाकिम को लिख भेजा कि या तो इमाम हुसेन हमारा शिष्यत्व स्वीकार
करें या उन का सिर काट लो। मदीने के हाकिम ने यह वृत्त इमाम हुसैन से
कहा और उन पर अधिकार जमाने को नाना प्रकार की उपाधी करने लगा।
यह बिचारे दुखी होकर अपने नाना और मा की समाधि पर बिदा होने
गए और रो रो कर कहने लगे कि नाना तुम्हारे धर्म के लोग निरपराध हु-
सैन को कष्ट देते हैं, हसन को विष दे कर मार चुके पर अभी इन को सन्तोष
नहीं हुआ तुम्हारे एक मात्रपुत्र और उत्तराधिकारी दीन हुसैन को महन्तो
का पद त्याग करने पर भी यह लोग नहीं जीता छोड़ा चाहते। इसी
प्रकार अनेक बिलाप करके अपनी मा और भाई के समाधी पर से भी बिदा
हुए और अपनी सपत्नी नानियों और सस्बन्धियों से विदा हो कर मक्के की
और चले । इसी समय कूफा के लोगों ने इमाम को एक पत्र लिखा उस में
उन लोगों ने लिखा कि "हम लीग यजीद मद्यप के धर्म शासन से निकल
दुके हैं आप यहां आइए आप ही वास्तव में हमारे गुरु हैं हम लोग आप को
चरण के शरण में रहैगे और प्राण पर्यन्त आप से अलग न होंगे। इस बात
को हम शपथ करते हैं।" इस पत्र पर कूफा के हजारों सुख्य के हस्ताक्षर थे ।
इस पत्र को पाकर इमाम ने कूफा जाना चाहा, उन के बन्धुओं ने उन से
बहुत कहा कि कफ के लोग सूठे होते हैं आप उन का विश्वास न कीजिए पर
उन के ईश्वर की शपथ खानेपर विश्वास करके इमाम ने किसी का कहना न
सुना और अपने सका को या को समय अपने चचेरे भाई सुसलिम को क-
फियों के पास भेजा कि उन को मक्का से लौटतो समय इमाम के कूफा आने का
सस्वाद पहिले से दें । इन को इधर भेज कर भाप बन्दना के हेतु मक्क चले।
सुसलिम जन कूफ में पहुंचे तो इन का वहां के लोगों ने बड़ा शिष्टाचार किया.
और इमाम हुसैन के गुरत्व का सब ने खीकार किया यह देख कर इन्हों नेः
इमाम को पत्र लिखा कि आप निशशश कूफा आइए यहां के लोग सब आप
को दासानुदास हैं और तीसहजार आदमियों ने आप को गुरु माना है। इस
पत्र के विश्वास पर इमाम हुसैन कूफे की ओर और भी निश्चिन्त हो कर चले..
और बाधवों का बाक्य खोकार ने किया किन्तु शोक्ष की बात है कि बिचारे.
सुमन्तिम वहां मारे जा चुके थे कारण यह हुआ कि यजोद ने जब सुना कि
कूफा में सुसलिम इमाम हुसैन का भाचायल चला रहे हैं तो उस ने वहां
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