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पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/३२५

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के हाकिम को बदल दिया और प्रवीदुल्लाह जियाद नन्दन वो हाकिम बनाया और आज्ञा भेजा कि हुसैन को बकरे की भांति जिवह करो और मु- मन्तिस को तो जाते हो मार डालो । जब जियाद पुन शाम का हाकिम हुआ तो मुसलिम के पकड़ने की फिक्र में हुआ। पहिले तो कूफे के लोग सुसलिम के साथ उस के मकान पर चढ़ गए परन्तु जब उस ने उन लोगों को धम- काया और लालच दिया तो एक एक करके सब सुसलिस का साथ छोड़ कर चले गए और मुसन्तिम बिचारे भाग कर एक घर में जा छिपे । परन्तु लोगों . ने उन को वहां भी जाने न दिया प्रौर पकड़ लाए और इबने जियाद की आज्ञा से उन का सिर काटा गया और उन का साथी हानी भी सारा गया बरच उन के दो तड़कों को भी मार डाला। महात्मा सुसन्तिम मरने के समय यही कहते थे कि सुझे अपने मरने का कष्ट नहीं क्योंकि सत्य मार्ग स्थापन में मेरे प्राण जाते हैं मुझे शोच यही है कि मेरे पत्र के विश्वास पर इन कृतघ्नी और विश्वास घाती कफा वालों के विश्वास पर इमाम हुसैन यहां चले आ- बैंगे और उन महापुरुष के साथ भी ये का पुरुष कुपुरुष यही व्यवहार क- रेंगे और प्राचार्य मुहम्मद की सन्तान को निरपराध ये लोग बध कर डालेंगे। हाय उन के भाई सुसलिम कृफे में यों अनाथ को भांति मारे गये यह हुसैन को नहीं मालूम था और वे मंजित मंजिल इधर ही बढ़े पाते थे। यहां तक कि जब शाम के हाते के भीतर पहंच चके तब उन्हों ने मसलिम का मरना सुना। उस समय आपने अपने साथ के लोगों से कहा कि भाई अब सब लोग तम अपने देस को लौट जाओ हम तो प्राण देने जाते हैं। उस समय वे सब लोग जो अरब से साथ पाए थे प्राण के भय से अपने सच्चे स्वामी को छोड़ कर चले गये यहां तक कि हजारों की जमात में केवल ७२. मनुष्य साथ रह गए । जब इन लोगों के साथ इमाम सरलफ नामक स्थान पर पहुंचे तो हुर नामी अवीदुल्लाल का सेनापति दो हजार सिपाहियों के साथ मिला और वह इन लोगों को घेर कर शाम की तरफ बढ़ता हुआ ले चला इस समय इमाम ने फिर सब लोगों को जाने को कहा परन्तु अब तो के लोग साध थे जो सच्चे बन्धु थे। ऐसे कठिन समय में कौन साथ छोड़ कर जा सकता था। इसी समय शाम से और भी फौजें पाने लगी इमाम ने उन लोगों को बहुत समझाया और कहा कि हम यजीद के राज्य के बाहर चले जांय किन्तु किसी ने उन की लात न सुनी। जब इमाम का डेरा करबला