रुपये की चीजें दी गई। प्रायः लोगों को इस बात के जानने का उत्साह होगा कि रहां का रूप और वस्त्र कैसा था। नित्सन्द ह जो कपड़ा खां पहने थे वह उन के साथियों से बहुत अच्छा था तौभी उन की या उन के किसी साथी को शोभा उन सुगन्नों से बढ़कर न थी जो बाज़ार में सेवा लिये घूसा करते हैं, हां कुछ फ़क़ था तो इतना था कि लम्बी गझिन दाढ़ी के कारण खां साहिब का चिहरा बड़ा भयानक लगता था। इन्हें झंडा न मिलने का कारण यह समझना चाहिये कि यह बिल्कु ल स्वतन्त्र हैं। इन्हें आने और जाने के समय श्रीयुत वाइसराय गन्तीचे के किनारे तक पहुंचा गए थे पर बै- ठने के लिये इन्हें भी वाइसरायके चबूतरे के नीचे वही कुरसी मिली थी जो और राजाचों को । रन माहिब के मिज़ाज में रूखापन बहुत है । एक प्रति- ष्ठित बंगाली इन के डेरे पर सुलाकात के लिये गए थे। खां ने पुछा क्यों पाए हो ? बाबू साहिब ने कहा आप की मुलाकात को। इस पर खां बोले कि अच्छा आप हम को देख चुके और हम आप को, अब जाइये। बहुत से छोटे २ राजाओं की बोल चाल का ढंग भी जिस समय वे वा- इसराय से मिलने आए थे संक्षेप को साथ लिखने के योग्य है। कोई तो दर ही से हाथ जोड़े अाए, और दो एक ऐसे थे कि जब एडिडकांग के बदन झुका कार इशारा करने पर भी उन्हों ने सलाम न किया तो एडिडकांग ने पीठ पकड़ कर उन्हें धीरे से झुका दिया। कोई बैठ कर उठना जानते ही न घे यहां तक कि एडिडकांग को “ उठो” कहना पड़ता था। कोई झंडा, त- गमा, सलामी और खिताब पाने पर भी एका शब्द धन्यवाद का नहीं बोल सवो और कोई विचार इन में से दो हो एका पदार्थ पा कर ऐसे प्रसन्न हुए कि श्रीयुत वाइसराय पर अपनी जान और साल निछावर करने को तैयार थे । सब से बढ़ कर बुद्धिमान हमें एक महात्मा देख पड़े जिन से वाइसराय ने कहा कि आप का नगर तो तीर्थ गिना जाता है पर हम आशा करते हैं कि त्राप इस समय दिल्ली को भी तीर्थ ही के समान पाते हैं। इस के बाद में वह वेधड़वा बोल उठे कि यह जगह तो सब तीर्थी से बढ़कर है जहां बाप इसारे “ खुदा ” मौजूद हैं। नौवाब लुहारू को भी अंगरेज़ी में बात चीत सुन कर ऐसे बहुत कम लोग होंगे जिन्हें हंसी न आई हो। नौवाब साहिक बोलते तो बड़े धड़ाके से थे पर उसी के साथ वायदे और मुहावरे के भी रब हाथ पांव तोड़ते थे। कितने नाका ऐसे थे जिन के बाल पार्थ ही नहीं है
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