राजा से मेल कर लिया। और सन् १६६६ में आप भी दिल्ली गया पर वहां उस का यथेष्ट आदर न हुआ इस से उसनं बादशाह को कटु बचन कहा जिस से थोड़े दिन तक कैद में रह कर फिर अपने बेटे समेत दक्खिन भाग गया कुछ दिन पोछे औरङ्गजेब ने उस को राजा का खिताब दिया और उसी।अधिकार से उसने दक्खिन में सन् १६७० में चौथाई और सर देश मुरकी नाम कर दो कर स्थापन किये। सन् १६६५ में इसने पानी के राह से मालावार पै चढ़ाई की और दो नेर सूरत लूटा जब यह दूसरे बेर सूरत लूटने जाता था तब १५००० फौज इस के साथ थी और राह में हुगली नामक शहर लूटने से बहुत सा धन इसके हाथ आया और फिर तो वह यहां तक बलवान हो गया था कि जो अपने भाई बेङ्गो जी से बाप को जागोर बंटवाने और बीजापूर का मूलाका लूटने को करनाटक की तरफ गया था तो इस के साथ ४०००० पैदल और ३०००० सवार थे।
सामराज पन्त से पेशवाई ले कर मेरी पन्त पिङ्गला को उस स्थान पर नियत किया और प्रताप राव गूजर इस का मुख्य सेनापति था जिस के मरने पर हरबीर राव सोहिता उसी काम पै हुआ।
सन् १६७६ रामगढ़ में शिवा जी का विधिपूर्वक राज्याभिषेक हुआ और तब इसने पाठ अपने मुख्य प्रधान रखे थे। पेशवापन्त, अमात्य, पन्त सचिव, मन्त्री, सेनापति, सुसन्त, न्यायाधीश और पण्डितराव ; यही आठ पद उसने नियुक्त किये थे और अपने जीते हुए देशों का काम आवाजी सोन देव के अधिकार में दिया।
जिस समय सब कोंकन और पूना का इलाका और करनाटक और दूसरे देशों में भी कुछ पृथ्वी इस को आधीन थी उस समय सन् १६८० ई० में सन्मा-जी और राजाराम नाम के दो पुत्र छोड़ कर ५३ बर्ष की अवस्था में यह पर-लोक सिवारा।
शिवा जी के मरने के पीछे २३ वर्ष की अवस्था में सम्माजी गद्दी पर बैठा पर यह ऐसा कर और दुर्व्यसनी था कि इस से · सब लोग दुखी थे। इसने अपने छोटे भाई राजाराम की मा को मार डाला और सब पुराने कारवारि-यों को निकाल कर कलूसा नासका कनौजिया ब्राह्मण को सब राज काज सौंप दिया। इस की दुष्टता से इस के पिता का सब प्रबन्ध बिगड़ गया और सब सर्दार इस के अशुभ चिन्तक हो गये और यहां तक कि सन् १८८८ ई०