पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/५५

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में जब यह सङ्गमेश्वर की भोर शिकार खेलने गया था तो इस को सुशली ने पकड कर औरङ्गजेब की आज्ञा से कलूसा ब्राह्मण समेत तुलापूर में मार डाला।

इस का पुत्र शिवा जी जिस को साहू जी सी कहते हैं औरङ्गजेब की कैद में था इस से इस का सौतेला माई राजाराम गद्दी पर बैठा। इसने सितारा में अपनी राजधानी स्थापन किया और पन्त प्रतिनिधि नाम का एक नया पद नियुक्त किया और बड़े भाई के बिगाड़े हुए सब प्रवन्धों को नए सिर से सवांरा । यह १७०० ई० में सरा और फिर ८ वर्ष तक इल की लीताराबाई ने अपने पुत्र शिवा जी को गद्दी पर बिठा कर उस को नाल से राज्य का काम चलाया।

इन लोगों के समय में औरणजेब ने महाराष्ट्रों को बहुत विगाड़ना चाहा परन्तु कुछ फल न हुञा यहां तक कि वह सन् १७०७ में प्रापही सर गया। जब सम्मा जी का पुत्र शिवा जी औरङ्गजेब के पास रहता था तव श्रीरङ्गजेब इस के दादा को लुटेरा शिवा जी और उस को साडू शिवा जी कहता था इसी से दूसरे शिवा जी का नाम साहू राजा छुना। सन् १७०८ ई० में जब साहू औरङ्गजेब की कैद से छुट कर आया तब सर्दारों ने उसे सितार की गद्दी पर बिठाया और तब उस की चाची ताराबाई ने अपने पुत्र शिवा जी को ले कर कोलापूर का एक अलग स्वतन्त्र राज स्थापन किया।

जब साहू राजा १७ वर्ष तक कैद में था तब औरङ्गज्जव की बेटी उल पर और उस की सा पर बड़ी मेहरबान थी इसी से औरङ्गजेब ने अपने यहां के दो बड़े बड़े मरहठे सरदारों की वेटी उसे व्याह दी थी और उसे बधुत सी जागीर भी दी थी। जब साहू राजा दिली से सितारे भाता था तब एज स्ली ने अपना दूध पीने वाला बालका उस के पैर पर रख दिया था जिस के वंश में अव अबालकोट के राजा हैं। साहू राजा का खभाव विषयी था इसी से उसने अपना सब काम धना जी राव यादव को सोंप रक्खा था और उसले आवा जी पुरन्दरे और बाला जी विश्वनाथ नास के दो मनुष्य अपने नीचे रक्खे धे धना जी के मरने पर सन् १७१४ ई० में वाला जी विश्वनाथ पेशवा हुआ और महाराष्ट्र के इतिहास में इस का नाम सब ले प्रसिद्ध है।

साहू राजा ४२ वर्ष राज करके ६६ वर्ष की अवस्था में सन् १७४८ ई० में सर गया और इसके पीछे सितारे का राज्य पेशवा के अधिकार में महा यह