पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ७ ]


या कि इस लड़ाई को वह बड़ी असावधानी से लड़ा जब उसने सुना कि विम्साल राव बहुत जखमी हो गया है तब हाथी पर से उतर पड़ा और फिर उसका पता न लगा। जनकी जी सेंधिया और इब्राहीम रहां गारदी भी मारे गये और दूसरे भी अनेक बडे बड़े सरदार मारे गये। और मरहटों की ऐसी भारी हार हुई कि सारे दक्खिन में सियापा पड़ गया। और नाना साहेब को तो इस हार ले ऐसी ग्लानि और दुःख हुआ कि थोड़े ही दिन पीछे पर- लोक सिधारे । इप्स मनुष्य के समय में जैसी पहिले महाराष्ट्रों की वृद्धि हुई थी वैसाही एक साथ क्षय भी हो गया । सन् १७६१ में बालाजी बाजीराव उर्फ नाना साहब के मरने पीछे उनका पुत्र पहिला माधवराव गद्दी पर बैठा।यह स्वभाव का न्यायी सूर धीर और दयालु था। मराठी राज से बेगार की चाल इसने एक दस उठा दी थी और गरीबों के पालने से इसका चित बहुत ही बहलता था । नाना फड़नवीस नामक प्रसिद्ध मनुष्य इसका मुख्य वीर था और मराठी राज्य की आमदनी उसके समय सात करोड़ रुपया थी।इसी के काल में हैदरअली ने मैसूर को राज़ की नेव दी थी। इसन राघोबा दादा को कोद करके पूने भेज दिया और आप न्याय और धर्म से ११ बरस राज करके २८ बरस की अवस्था में क्षय रोग से सरा। इसके मरने पीछे इसके भाई नारायण राव को गद्दी पर बैठाया पर. आठ ही सहीने पीछे रघुनाथ राव ने उस को एक सूबेदार से सरवा डाला और आप गद्दी पर बैठा । इस से सब कारवारी इतने नाराज़ थे कि जब नारायण राव की स्त्री गंगाबाई (जो विधवा होने के समय गर्भवती थी) पुत्र जनी तो सवाई माधवराय के नाम से उस को राजा बना के उसके नाम को सुनादी फिरवा दी और नाना फड-नवीस सब कामकाज करने लगा। राघोबा ने अंगरेजों से इस शर्त पर सहायता चाही कि साष्टीवेट बसई गांव और गुजरात के कुछ इलाके अंगरेज सरकार को दिये जायं पर पोर्तुगीज और बादशाह के कलह से अंगरेज़ों ने आप ही वह बेट ले लिया और फिर कलकत्ते के गवर्नर के लिखे अनुसार नाना फडनवीस ने साष्टीवेट अंगरेजों को लिख दिया और कोंपर गांव में रा- घोबा को कुछ महीना करके रख दिया। राघोबा दादा को बाजीराव चिमना आप और अमृतराव से तीन पुत्र थे परन्तु अमृतराव दत्तक थे। राघोबा का कई मनोरथ पूरा नहीं हुआ और सन् १७८४ में मर गया। नाना फड़न-वीस से महाजो सेंधिया से कुछ लाग घी इस महाजी उसके तावे कभी नहीं