पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/५९

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हुआ और सदा कुछ उत्पात करता रहा । नाना की फौज के हरिपन्त फड़के और परशुराम पन्त पवन ये दो बड़े सरदार थे। सन् १७८५ में निसाज अली से महाराष्ट्र लोगों से एक बड़ी लड़ाई हुई जिस में मरहठ जीते और अगरेजों से भी तीन बरस तक कुछ कलह रही पर फिर मेल हो गया। सन् १७८६ में नाना फड़नवीस के वंश में रहने के दुख से माधव राव गिर के मर गया और राघोबा का बड़ा बेटा दूसरा बाजीराव पेशवा हुआ पर इस से भी नाना फड़नवीस से रखट पट चली ही गई। बाजीराव ने दौलतराव सेंधिया को उभारा और उसने छल बल करको नाना पाड़ नवील को नगरके किले में दो द कार लिया पर बाजीराव को उसके कद से छुड़ा कार फिर से दीवान।बनाना पड़ा क्योंकि ऐसा चतुर मनुष्य उस काल में उसको दूसरा सिलना।कठिन था । नाना फड़नवीस सन् १८०० में सर गया और सराठी राज्य की लक्ष्यी और बल अपने साथ लेता गया।। राज पर बैठने की पहिले वाजीराव ने दौलतराव से करार किया था कि इस पेशवा होंगे तो तुसको दो करोड़ रुपया देंगे पर जब इतना शपया नाप न दे सका तो दौलत राव के साथ पूना लूटा । सन् १८०२ में जब दौलत राव कहीं दौरा करने गया था तब यशवला राव हुलकर ने पूना पर चढ़ाई किया और पेशवा और सेंधिया दोनों की सैना को हरा कर पूने को खूब लूटा । बाजीराव इस समय आग कान अगरेजों की वरण गया और उनसे बसई में यह बात ठहराई कि सर्कारी ८००० फौज ने में रहै और बाजीराव को शत्रुओं से बचावै और उसका सब खर्च वाजी राव दे। अगरेजी फौन पहुंच जाने के पूर्वही हुलकर पूना छोड़ के चला गया और बाजीराव फिर से पेशवा हुआ। दाजी राव ऊपर से तो अगरेजों से मेल रखता था पर भीसर से बड़ाही बर रखता था और दूसरे राजों को बहकाने सिवा आप भी छिपी२ फौज भरती करता जाता था । सन् १८ १५ में गङ्गाधर शास्त्री पटवर्धन जो गाइकावाड़ का वकील होकर सकर अगरेज की सलाह से बाजीराव के दरयार में गया था, उसको बाजीराव ने चाबका उष्ला नाम के एक अपने मुंह लगे हुये सरदार से सरवा डाला जो सर्कार को और बाजीराव के बैर का मुख्य कारण हुधा और सर्कार ने उस नरवकल को सन्१८१८ में पकड़ कर चुनार के किले में कैद किया । सर्कारी फौज इस समय गवर्नर जेनरल की आज्ञा से पिंडारो को शमन वारती फिरती थी कि दूमी बीच में मी बाजीराव ने विसी बहाने से सार से लड़ाई करनी पारख करदी और