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बापू गोखला को सेनापति नियत किया पर अन्त में हार कर सन् १८१८ ई. ३ जून को मालकम साहेब के शरण में जाकर आठ लाख रुपया साल लेकर बिठर में रहना अङ्गीकार किया। और इसी बीच में मष्ट गांव पर छापा मार को सितारा के राजा को पकड़ लिया और इसी तडाई में पाप मारा गया। जब बाजीगव भागा फिरता था उन्हीं दिनों में भीमा के किनारे कारै गांव में सरहटी की फ़ौज से और सर्कारी फौज से एका बड़ा धोर युद्ध हुआ जिसमें सर्कारी ३०० सिपाही और बीस प्रङ्गरेज मारे गये पर इन लोगों ने बहादुरी से उनको बागे न बढ़ने दिया । सर्कार की ओर से यहां जय सूचक एक की-तिस्तम्भ बना है। सर्कार ने महाराष्ट्र देश का राज अपने हाथ में लेकर ए-लिफिरतन साहेब को वहां का प्रबन्ध सौंपा और पूर्वोक्त साहब ने महाराष्ट्रों को परम्परा के मान और रीति का पालन करके किसी को जागीर किसी के साथ बन्दोबस्त करके वहां की पूजा को ऐसा सन्तुष्ट किया कि वे लोग अब तक उन को स्मरण करते हैं।
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