पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/६८

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राव रतन जी सं० १६६४ (T. 1613 A. D.) इनके पुत्र कुंअर साधवसिंह ने जहांगीर से कोटा पाया और कंवर गोपीनाथ जुवराज हुए। कंवर गोपी- नाथ भी [ स० १६७१ ] युव राजत्व के समय ही में शान्त हुए इस से उन के पुत्र रावराजा शत्रु शाल रावरत्न जी के गोद बैठे ( सं० १६८८ और माधव सिंह कोटा को राजा हुए। यह राजा शत्रु शाल ( प्रसिद्ध छत्रसाल बड़ा बीर हुआ है जिसने कुलवर्गा जीता और उज्जैन की प्रसिद्ध लड़ाई में १२ राजा- ओं के साथ मारा गया, * रावराजा मावसिंह सं० १७१५ (1660 A. D.) इन्हों ने औरङ्गजेब से औरगाबाद की सूबेदारी पाया । रावराजा अनरुद्धसिंह सं० १७३८ (P. 1687. A. D.) ये भावसिंह के छोटे भाई के पौत्र थे । रावराजा बुधसिंह सं० १७५२ (P. 1710 A. D.) इन्हों ने बहादुर शाह की सहायता की

  • दारासाहि औरंगजुरेहैं दोऊ दिल्ली दल एकैगएभाजि एकै रहे रूंधि चाल में ।

भयो घोर जुद्ध उद्ध माच्यो आत दुन्द जहां कैसहु प्रकार प्रान बचत न काल में ॥ हाथी तें उतरि हाडाजूझ्यो लोह लंगर दै एतीलाज का मैं जेती लाज छत्रसाल में तन तरवारन में मन परमेश्वर में प्रन खामि कारज मैं माथो हरमाल में ॥ न शिवसिंहसरोज में लिखा है वुद्धराव ( संवत् १७५५ )- ये महाराज बूंदी के राजा औ जयसिंह सवाई आमेर वाले के बहनोई थे बहादुरशाह बादशाह ने इनका बड़ा मान किया इस बादशाह के इहां दूसरे की ऐसी इज्जत न थी जब सय्यद बारहा ने बादशाह को बेदखल करि आपही बादशा- ही नक्कारा बजाते हुए गली कूचों में निकलने लगा तब तो इस शूरबीर से कब रहा जाता था शय्यदों का मुह तरवारों की धार से फेर दिया औ तमाम उमर बादशाह के इहां रहा कविता इनकी बहुत ही अपूर्व है औ कवि लोगों का बड़ा मान दान देने वाला था। कीनोतुम मान मैं कियो है कब मान अब कीजै सनमान अपमान कीनो कब मैं। प्यारी हंसि बोलु और बो कैसे बुद्ध राज हंसि हंसि बोलु हंसि बोलि हौं जू अब मैं ॥ दृग करि सोहैं कोरि सौंहैं करि जानत है अब करि सौंहैं अनसौंहैं कीने कब मैं। लीजै भरि अंक जहां आये भरि अंक हौ न काहू भारि अंक उर अंक देखे अब मैं ॥१॥ ऐसी ना करी है काहू आजु लौं अनैसी जैसी सैयद करी है ये कलंक काहि चढ़ेंगे। दूजे को नगाड़े बाजै दिली में दिलीश आगे हम सुनि भागें तौ कबिंद कह पढ़ेंगे।