पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/६९

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थी किन्तु जयपुरवालों ने इन्हें दाज्यच्युत कर दिया । सहाराव राज उमेद सिंह सं० १८०५ ( 1745 A. D. ) होलकर को सहायता से बूंदो फेर लिया (1747 और फिर बिरता हो कार राज छोड़ कर चले गए । अजीत सिंह सं० १८२७ ( I776 ) महाराव राजा विष्णु सिंह सं० १८३० इन्होंने सल्बत् १८७४ में सर्कार से अहदनामा किया। महाराव राजा रामसिंह। ये वर्त- मान बंदी के महाराव हैं सं० १८७८ में सावन कृष्ण ११ को इन्हों ने राज पाया और पूस सुदी ३ सं० १८६६ को इनका जन्म है। ये महाराज बड़े धर्मनिष्ट और संस्कृत के अनुरागी हैं। सार से इस राज्य की सलामी १७ तोप की नियत की गई है और महारावराज श्री रामसिंह जी को जी० सी० एस० आई और “ काउन्सेलर आफ दो इप्रेम” ( राज राजेश्वरी के सत्ता- हकार ) की उपाधि दिल्ली के दरबार में ( 1877 A. D.) मिली। कोटा को शाखा। राव माधोसिंह सन् १५७८ ई.० राव सुकुन्द सिंह सन् १६३० ई० राव जगतसिंह सन् १६५७ ई० राव किशवर (किशोर ) सिंह सन् १६६८ ई. राव रामसिंह सन् १६८५ ई० राव भीमसिंह सन् १७०७ ई० महाराव अर्जुनसिंह सन् १७१८ महाराव दुर्जनशाल ( निस्सन्तान) महाराव अजीतसिंह [ विष्णु सिंह के पोते ] सहराज छत्रसाल महाराज गुमानसिंह सन् १७६५ ( अपने भाई छत्रसाल की गद्दी बैठ) जालिम सिंह इन के फौजदार थे। महाराव उमेदसिंह सन् १७७० ई० महाराव किशोरसिंह सन १८१८ ई० कहै राव बुद्ध हमैं करने हैं युद्ध स्वामि धर्म में प्रसुद्ध जेह जान जस मदेंगे। हाड़ा कहवाय कहा हारि करि कट्टै ताते झारि शमशेर आजु रारि करि कड़ेंगे ॥२॥