[ २ ] बालकाण्ड-अयोध्या के वर्णन में किले की छत पर यंत्र रखना लिखा है। यंत्र का अर्थ कल हैं* इस से यह स्पष्ट होता है कि उस जमाने में किले की बचावट के हेतु किसी तरह की कल अवश्य काम में लाई जाती थी चाहे वे तोप हो या और किसी तरह की चीज (या यंत्र से दूरबीन सतलब हो)। शतजी यह उस चीज़ को कहते हैं जिस से सैकड़ों बादसी एक साथ ___* यन्ल उस को कहते हैं जिस से कुछ चलाया जाय श्रीगीता जी में लिखा है “ ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति। मासयन् सर्वं भूतानि यन्लारूढानि मायया ” । ईश्वर प्राणियों के हृदय में रहता है और वह भूत, सान को जी (मानो) कल पर बैठे हैं साया से घुमाता है। तो इल से स्पष्ट प्रकट होता है कि यन्त्र से इस लोक में किसी ऐसी चीज़ से मतलब है जो चरखे की तरह घूमती जाय । कल शब्द भी हिन्दी है "'कत गती” से बना हो वा “ कल प्रेरणे " से निकाला होगा ( कवि कल्पद्रुस कोष देखो) दोनों अर्थ ले उस चीज़ को कहेंगे जो आप चलै वा दूसरे को चलावै । ___ शतघ्नी को भी यन्त्र करके लिखा है। शतघ्नी कौन चीज़ है इस का निश्चय नहीं होता। तीन चीज़ में इस का सन्देह हो सकता है एक तोप टू- सरे मतवाले तीसरे नन्हीरे में। इस के वर्णन में जो २ लक्षण लिखे हैं उन से तोप का तो ठीक सन्देह होता है पर यह सुझे अब तक कहीं नहीं सिला कि ये शतनियां पान के बल से चलाई जाती थीं इसी से उन के तोप होने में कुछ संदेह हो सकता है। सतवाले से शतघ्नी के लक्षण जुछ नहीं मिलते क्योंकि सतवाले तो पहाड़ों वा किलो पर से कोल्हू की तरह लुड़काये जाते हैं और इस के लक्षणों से मालूम होता है कि शतनी वह वस्तु है जिस से प- स्थर छुटैं। जहमीरा वा जम्हीरा एक चीज है उस से पत्थर छुट छुट कर दुशमन की जान लेते हैं (हिन्दुस्तानको तवारीख़ में मुहम्मद कासिसकी लड़ाई देखो) इस से शतघ्नी के लक्षण बहुत मिलते हैं। पर रामायण में लिखा है कि लोहे की शतली होती थीं और फिर सुंदरकाण्ड में टूटेहुए वृक्षों की उपमा शतनी की दी है इस से फिर संदेह होता है कि हो न हो यह तोप ही हो। रासा- यण के सिवा और पुराणों में भी किले पर शतघ्नी लगाना लिखा है । (मत्य पुराण में राजधन वर्णन में) दुर्गयन्त्राः प्रकर्तब्या: नाना प्रहरणान्विताः । शहनधातिमो राजस्त स्तुरक्षाविधीयते ॥ १॥ दुर्गञ्च परिखोपेतं वप्राहालक
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