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पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/७४

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[३] सारे जा सके। कोषों में इस शब्द के अर्थ यह दिए हैं कि शतघ्नी उस प्रकार की कल का नाम है जिस से पत्थर और लोहे के टुकड़े छूट कर बहुत से आ- दसियों के प्राण लेते हैं और इसी का दसरा नाम वृश्चिकाली है । ( सर राजा राधाकान्त देव का शब्द कल्यद्गुस देखो।) इस से मालूम होता है कि उस समय में तोप या ठीक उसी प्रकार का कोई दूसरा शस्त्र अवश्य था। अयोध्या के वर्णन में उसकी गलियों में जैन फ़कीरों का फिरना लिखा है इस से प्रकट है कि रामायण के बनने से पहिले जैनिओं का मत था। जिस समय राजा दशरथ ने अश्वमेध यज्ञ किया उस समय का वर्णन है कि रानी कौशिल्या ने घोड़े को तलवार से काटा। इस बात से प्रकट होता है कि आगे की स्त्रियों को इतनी शिक्षा दी जाती थी कि वह शस्त्र विद्या में भी अति निपुणता रखती थीं । ___ अभी एशियाटिक सोसाइटी के जरनल में पण्डित प्रान नाथ एम्. ए. ने इस का खण्डन किया है कि बारहमिहर के काल में श्रीकृष्ण की पूजा ईश्वर समझ के नहीं करते थे, और बराहमिहर के श्लोकों ही से श्रीकृष्ण की पूजा और देवतापन का सबूत भी दिया है। और भी बहुत से विद्वान इस बात में झगड़ा करते हैं। और योरोप के विद्वानों में बहुतों का यह मत है कि श्री वाण की पूजा चले थोड़ेही दिन हुए, पर ४० सर्ग के दूसरे श्लोक में नारायण के वास्ते दसरा शब्द वासुदेव लिखा है और फिर पच्चीसवें श्लोक में कपिल देव जी को बासुदेव का अवतार लिखा है ; इस से स्पष्ट प्रकट है कि उस काल से श्रीकृष्ण को लोका नारायण कर के जानते और मानते हैं।* संयुतं । शतन्नी यन्त्र मुख्यैश्च शत शश्च समावृतं ॥ २ ॥ इस में ऊपर के लोक में शतघ्नी के बदले सहजघाती शब्द है (यहाँ शत और सहस्र शब्दों से सुराद अनगिनत से है )। तोप की भांति सुरंग उड़ाना भी यहां के लोग अति प्रा- चीन काल से जानते हैं। आदि पर्व का ३७८ श्लोक देखो। सुरंग शब्द ही भारत में लिखा है।

  • भारत के भी आदि पर्व का २४७ से २५३ श्लोक तक और २४२७ से

२४३२ श्लोक तक देखा। श्रीकृष्ण को परब्रह्म लिखा है। और भी भारत में सभी स्थानों में हैं उदाहरण के हेतु एक पर्व मात्र लिखा।