पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/८७

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राजा अग्र ने अपने सहायक गर्ग ऋषि के नाम से अपना प्रथम गोत्र किया और दूसरे गोत्रों के नाम भी यज्ञों के अनुसार रक्खे । राजा अग्र ने अपने कुल पुरोहित गौड़ ब्राह्मण बनाए और उस काल में सब अगरवाले बेद पढ़- ने वाले और टकाल साधने वाले थे । राज अग्र बूढ़ा होकर तप करने चला गया और उस्का पुत्र विभु राज पर बैठा और उस्को कई वंश तक राजा लोग अपने धर्म में निष्ठ होकर राज करते रहे। इस वंश में दिवादार एक राजा हुआ जो वेदधर्म छोड़कर जैनी हो गया और उसने बहुत से लोगों को जैनी किया और उसी काल से अगरवालों मे वेदधर्म छूटने लगा परन्तु अगरोहा और दिल्ली को अगरवालों ने अपना धर्म नहीं छोड़ा। इस वंश में राजा उग्रचन्द्र के समय से राज घटने लगा और अब शहाबुद्दीन ने चढ़ा- ई किया तब तो अगरोहा सब भांति नाश कर दिया-शहाबुद्दीन की लड़ाई में बहुत से लोग मारे गए और उनकी बहुतसी स्त्री सती हुई जो हम लोगों के घर में अब तक मानी और पूजी जाती हैं। यह अगरवालों के नाश का ठीक समय था इसी समय से इन में से बहुतों ने धर्म छोड़ दिये और यज्ञोपवीत तोड़ डाले । उस समय जो अगरवाले भागे वे मारवाड़ और और पूर्व में जा बसे । और उनके वंश में पुरबिये और माड़वारी अगरवाले हुए, और उतराधी और दखिनाधी लोग भी इसी मांति हुए, पर मुख्य अग- रवाले पछांही वेही कहलाए जो दिल्ली प्रान्त में बच गए थे । जब सुगलों का राज हुआ तब अगरवालों की फिर बढ़ती हुई और अकबर ने तो अगर- वालों को अपना वजीर बनाया-उसी काल से अगरवालों की विशेष हधि हुई-अकबर के दो मुख्य और प्रसिद्ध अगरवाले वजीर थे जिनका नाम महा- राज टोडरमल और मडूशाह था, सडू साही पैसा इन्हीं के नाम से चला है।