बा शव नास पुन्यपत्तन जाना जाता है। ८ करनाल । ८ कोट कांगडा जिस का शुइ नाप्न नगर कोट है। अगरवालों की कुलदेवी महामाया का सन्दिर यहीं है और ज्वाला जी का मन्दिर भी इसी नगर को सीमा में है। १० लाहोर इस नगर का शुद्ध नाम लवकोट है। ११ संडी इसी नगर की सीमा में वालसर तीर्थ है। १२ बिलासपुर इसी नगर की सीमा में नयना देवी का सन्दिर वसा है। १३ गढ़वाल । १४ जींदसपीदम। १५ नाभा १६ नारनौल इस का शुद्ध नाम नारिनवल है। ये सब नगर उस राजधानी में थे, और राजधानी का नाम अग्र नगर था जिसे अब अगरोहा कहते हैं। आगरा और अगरोहा * ये दोनों नगर राजा अग्रसेन के नाम से आज तक प्रसिद्ध हैं। राजा अग्रसेन ने अपनी राजधानी में महालक्ष्मी का एक बड़ा मंदिर किया था। राजा अग्रसेन ने साढ़े सत्रह यज्ञ किये-इसका कारण यह है कि जब राजाने अट्ठारवां यन्न आरम किया और आधा हो भी चुका तब राजा को यज्ञ की हिंसा से बड़ी ग्लानि हुई और कहा कि हमारे कुल में यद्यपि कहीं भी कोई मांस नहीं खाता परन्तु दैवी हिंसा होती है सो आज से जो मेरे वंश म हो उसको यह मेरी आन है कि दैवी हिंसा भी न करै अर्थात् पशु यज्ञ और बलिदान भी हमारे वंश में न होवै और इस्म राजा ने उस यज्ञ को भी पूरा नहीं किया। राजा को १७ रानी और एक उपरानी थीं उनसे एक एक को तीन तीन पुत्र और एक एक कन्या हुई और उमी साढ़े सतह यज्ञ से साढ़े सत्रह गोत्र हुए। कोई लोग ऐसा भी कहते हैं कि किसो सनुष्य का व्याह जब गोत्र में हो गया तो बड़े लोगों ने एकही गोत्र के दो साग कर दिये इस्से साढ़े सत्रह गोत्र हुए पर यह बात प्रमाण के योग्य नहीं है। राजा अग्र के उन ७२ बहत्तर पुत्र और कन्याओं के बेटा काग्रवाल कहाए । अग्रवाल का अर्थ अग्र के बालक हैं। अग्रवालों के साढ़े सत्रह गोत्रों के ये पास हैं। १ गर्ग २ गोइल ३ गावाल ४ बासिल ५ कासिल ६ सिं- हल ७ संगल ८ अद्दल ८ तिंगल १० ऐरण ११ टैरण १२ ठिंगल १३ तित्तल १४ मित्तल १५ तुन्दल १६ तायल १७ गोभिल, और गवन अर्थात् गोइन आधा गोत्र है, पर अब नामो में के कुछ अन्दर उलट पुलट भी हो गए हैं।
- अब यह एक गांव सा बच गया है।