पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/९१

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प्राचरण दिखाये हैं परन्तु वह निन्दा निन्दा की भांति गृहीत नहीं होती क्योंकि पहिल में शरातो या सध्य देश के वासियों की मांति सोझा पासरी का प्रचार नहीं है और न ऊपर से वे लोग खच्छ रहते हैं परन्तु महमें निस्सन्देह कह रूता हूं कि यहां के काले चित्तवाले मनुष्यों से उनका चित्त पाहों उनका असको अतिरिका कार्य शल्य का शत्रु है दूसने भानु को को हुई निन्दा निन्दा नहीं कहाली हां हम बात का हम पूर्ण रूप से प्रसार देते हैं कि भारतवर्ष में पहिले पहिले श्राव्य लोग केवल पंजाब से लेकर प्रयाग तक वसते थे, श्रीमान जानमोर साहब ने लाहौर के चीफपण्डित पण्डित राधा- हारण सो जो पत्र लिगता है उसमें सुल कंट से उन्हों ने ख्यायन किया है कि जहां तक मैंने प्राचीन वेदादिक पुस्तक पढ़ीं उनसे मुझे पूरा निश्चय है कि सायं लोग पहले इन्हीं देशों में बरत घे। "चटग्वेद संहिता दशस मडल ७५ सू० ५ र इम से गंग यमुने सरस्वति शुतुद्रि स्तोम सचता पण या असि- या मरवृधे वितस्तयार्जीकीये शृणुह्या सषोलया । ६ सडल स. ४५ अ. ३१ अधि: पसीनां वर्षिछे म धन्नस्थात् उस्ताक्षो न गांग्यः। १० मड. सू . ७५ ट . और ५ र ७२ स . ट . १७ सप्तमे सप्तशाविन एक ने काशता ददुः यमुनायास शुत मुद्राधोगव्य' खधे निराधो शव्या पृधे.मंड ३. सू. ३३ जट.१ पपर्वतानासुती उपस्था दम्य इव विपिते हाससाने नावेव शुने सात- रारिहाणे विपाद छुतुद्री पयसा जदेते ३ मंड २३ समू० ४ ऋ० नित्वादधेवर प्राषिया इलायास्पदे उदिनले अरहाम् दृषद्वयां सानुण प्रापयायां शरसत्यां रव दो दिदीदि मंड ६१ मट . २ इयंशष्मसिविसखाइवा रुजत् सानु मिरीया तविषय गायिभि: पारावतशीमवसे सुवृत्तिभिः सरखतीमा विशानिमयीतिभिः” इत्यादि मुतियों में गङ्गा य सुना व्यासा सतलज सरस्वती इत्यादि नदियों की महिला काही है और ऋग्वेद में पहले और दूसरे मं० में वाटचाओं में नरखत्री को महिमा का ही है, यास्क ने अपने निकता में इन ऋचाओं को अर्घ में विटामित्व ऋषि को सतलज और व्या सा व राक्षाने पर यज्ञ वारने का और इन नदियों के स्तुति करने का प्रकरण लिखा है। और कोकाट देश तथा अन्य प्रदेश और इत्यादि प्रदेश और गोमती प्रत्यादि ____ मनु ने भी इन्हीं को पुण्य देव कहा है " सरस्वती दृषवत्योर्देवनद्यो- र्य दन्तरं” “कुरुक्षेत्र न मत्ल्याच पां दानाः शूर से नका:"